दिनेश निगम ‘त्यागी’ : जैसी संभावना थी वही हुआ, पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह को संगठन और सरकार से पंगा लेना महंगा पड़ने लगा। मंत्री गोविंद सिंह राजपूत से विवाद के चलते उन्होंने प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और खुरई क्षेत्र के एक कार्यक्रम के बैनर में वीडी के साथ मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव का भी फोटो नहीं लगाया था। तब से ही भूपेंद्र को इसका राजनीतिक नुकसान उठाने की चर्चा चल पड़ी थी। यह संभावना सच भी साबित होने लगी। एक तरफ भूपेंद्र को वीडी के समर्थन और तारीफ में पत्र लिख कर बैकफुट में आना पड़ा, दूसरी तरफ परिवहन घोटाले को लेकर उनके खिलाफ मोर्चे खुल गए।
विधानसभा में उप नेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे ने आरोप लगाया कि भूपेंद्र की सिफारिश पर सौरभ शर्मा की परिवहन विभाग में भर्ती हुई थी। जवाब में भूपेंद्र ने चुनौती दे डाली की यदि हेमंत आरोप साबित कर दें तो वे राजनीति से सन्यास ले लेंगे। हेमंत ने मीडिया को उनके हस्ताक्षर वाली नोटशीट भी जारी कर दी। अब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने पूछ लिया कि सौरभ समर्थक कब सन्यास ले रहे हैं? भूपेंद्र ने कहा था कि हेमंत मैनेज होकर आरोप लगाते हैं। यह सच हो सकता है फिर भी भूपेंद्र घिरते नजर आ रहे हैं। पिछली सरकार में ताकतवर रहे भूपेंद्र इस भंवर से वे खुद को कैसे निकालते हैं, इस पर सभी की नजर है।
नियम, मापदंडों के साथ खड़ी नहीं रह सकी भाजपा....
अनुशासित और नियम-कायदों से चलने वाली भाजपा न मंडल अध्यक्षों के चुनावों में खुद द्वारा तय मापदंडों पर चल सकी थी, न जिलाध्यक्षों के निर्वाचन में पार्टी संविधान के नियम और तय क्राइटेरिया के साथ खड़ी रह सकी’ मापदंडों का पालन न होने के कारण 50 मंडल अध्यक्षों के चुनाव होल्ड कर देना पड़े थे, कुछ जिलाध्यक्षों का निर्वाचन भी इससे भिन्न नहीं है। पार्टी संविधान के साथ खड़े न होने का पहला उदाहरण है शिवपुरी जिलाध्यक्ष का चुनाव। प्रावधान है कि पार्टी का जिलाध्यक्ष वही बन सकता है, जो कम से कम 6 साल पार्टी का सक्रिय सदस्य रहा हो।
भाजपा के प्रति निष्ठा संदेह से परे हो। शिवपुरी जिलाध्यक्ष घोषित किए गए जसवंत जाटव 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में आए थे और इसके बाद हुए उप चुनाव में हार गए थे। साफ है कि भाजपा ने केंद्रीय मंत्री सिंधिया के दबाव के सामने अपने संविधान को तिलांजलि दे दी। अब शिवपुरी जिले की भाजपा को कांग्रेस से आया नेता चलाएगा। दूसरा उदाहरण हैं अमित चपरा। भाजपा ने तय किया था कि 60 साल से कम उम्र वाला ही जिलाध्यक्ष बनेगा लेकिन शहडोल जिले की अध्यक्ष अमिता चपरा की उम्र 60 से ज्यादा बताई गई है। हालांकि अमिता पद के योग्य हैं और संगठन में कई दायित्व निभा चुक हैं, फिर भी पार्टी द्वारा तय मापदंड तो टूट गया।
अंबेडकर पर कांग्रेस-भाजपा में शह-मात की जंग....
कांग्रेस-भाजपा के बीच बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर के मान-अपमान को लेकर शुरू हुई जंग मप्र पर केंद्रित है। वजह है अंबेडकर की जन्मस्थली का महू में होना और कांग्रेस द्वारा यहां से ‘जय बापू, जय भीम, जय संविधान’ अभियान की शुरुआत। 27 जनवरी को आयोजित इस कार्यक्रम में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, सांसद प्रियंका गांधी सहित सभी वरिष्ठ नेता पहुंचने वाले हैं। कांग्रेस की योजना महू से शुरू अभियान को हर शहर, कस्बे और गांव तक ले जाने की है। कार्यक्रम मप्र में है इसलिए प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी इसमें पूरी ताकत झोंक रहे हैं।
उनके पास हाईकमान के सामने खुद को साबित करने का यह मौका भी है। अभियान से सतर्क भाजपा ने अंबेडकर मामले में जीतू को बैकफुट पर लाने का अभियान चला रखा है। पटवारी ने इसके अवसर भी उपलब्ध करा दिए। जैसे, वे अंबेडकर की फोटाे वाले पोस्टर को घुटने पर रख कुछ लिखने लगे। बंगले में पीसी ली तो दीवार पर महात्मा गांधी और अंबेडकर के फोटो मल्लिकार्जु खरगे-राहुल गांधी के नीचे लगे दिखाई पड़े। भाजपा ने इन्हें जीतू द्वार बाबा साहेब के अपमान से जोड़ दिया। भाजपा जवाब में ‘संविधान गौरव अभियान’ भी चला रही है। इस तरह अंबेडकर को लेकर कांग्रेेस- भाजपा के बीच शह- मात की जंग जारी है।
लीजिए, अब जीतू-उमंग के बीच नहीं बैठ रही पटरी....
प्रदेश में कांग्रेस जब भी विवादों से उबर कर आगे बढ़ने की कोशिश करती नजर आती है, तभी नए पंगे की खबर पार्टी कार्यकर्ताओं को हताश कर देती है। पहले खबर थी कि प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी से वरिष्ठ नेता कमलनाथ नाराज हैं। कमलनाथ ने इस पर स्पष्टीकरण जारी कर मामले को ठंडा करने की कोशिश की। पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव के साथ भी पटवारी की पटरी न बैठने की खबरें आती रहती हैं। अब जीतू और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के बीच ही मोर्चा खुले होने की चर्चा है।
कमलनाथ की नाराजगी पॉलीटिकल अफेयर कमटी की बैठक के दौरान सामने आई थी, जबकि जीतू-उमंग के बीच तनातनी की खबर पार्टी की प्रबंध समिति की बैठक के बाद सार्वजनिक हुई। उमंग इसे लेकर नाराज हैं कि कांग्रेस में उनकी राय नहीं ली जाती। विधायकों से ‘वन टू वन’ में भी उन्हें भेरोसे में नहीं लिया जा रहा है। वे चाहते हैं कि जिलाध्यक्षों की नियुक्ति विधायकों की राय से हो, इस पर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा। उमंग ने यह शिकायत पार्टी के प्रदेश प्रभारी भंवर जितेंद्र सिंह से की लेकिन उन्होंने टका सा जवाब दे दिया। उन्होंने कहा कि संगठन ही सर्वोपरि है। साफ है कि जीतू-उमंग के बीच कोई तालमेल नहीं है। यह स्थिति पार्टी को कहां ले जाएगी, फिलहाल कुछ भी कह पाना कठिन है।
खत्म तो नहीं हो रही कमलनाथ की राजनीतिक पारी....!
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ एक साल पहले विधानसभा चुनाव तक फिर मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे थे। वे प्रदेश कांग्रेस के एक मात्र शक्ति केंद्र थे। लगभग 6 साल तक वे ही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष, मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष थे। पार्टी में वही होता था, जो वे चाहते थे। किसी ने कल्पना नहीं की होगी कि एक साल बाद ही पार्टी में उनकी सक्रियता बयानाें तक सीमित होकर रह जाएगी। आज का सच यही है। कमलनाथ पार्टी की किसी भी बैठक में शामिल नहीं होते, होते भी हैं तो वर्चुअल। हां, लगभग हर ज्वलंत मुद्दे पर उनका बयान जरूर आता है। इसमें वे भाजपा सरकार और संगठन की आलोचना करते हैं। ज्यादा सक्रिय रह कर वे कांग्रेस की नई टीम का मार्गदर्शन कर सकते हैं लेकिन वे प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी से नाराज बताए जाते हैं।
दूसरी तरफ ऐसा भी लगता है कि लोकसभा चुनाव के दौरान जब उनके भाजपा में जाने की अटकलों ने जोर पकड़ा था, तब से कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें साइडलाइन कर रखा है। वे सोनिया गांधी, राहुल गांधी से कई मुलाकात कर चुके हैं। हर बार केंद्र में उन्हें नई जवाबदारी मिलने की अटकलें भी शुरू हुईं लेकिन नतीजा सिफर है। कमलनाथ के पास कोई दायित्व नहीं है। लगभग उनकी ही उम्र के दूसरे वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह पूरी तरह सक्रिय हैं। कमलनाथ की राजनीतिक पारी समाप्त तो नहीं हो गई?