राजीव मिश्रा, दतिया। DATIA: दतिया। जिला मुख्यालय से तकरीबन 17 किलोमीटर दूर स्थित कस्बा उनाव बालाजी में भगवान भास्कर सूर्य यंत्र के रूप में विराजित हैं। यह स्थान वैसे तो सतयुग कालीन माना जाता है किंतु यहां के बारे में यह सत्य जरूर है कि यह विश्व का एक मात्र वो स्थान है जहां भगवान भास्कर यंत्र के रूप में स्थापित हैं। पूर्व दिशा की तरफ दरवाजे वाले इस मंदिर के ठीक नीचे पावन पद्मावती यानि पहूज नदी बह रही है। यहां की एक और विशेषता है जो जग जाहिर है ।
कैसा भी चर्म रोग हो पहूज़ नदी में स्नान करने के बाद भगवान सूर्य बालाजी को जल स्नान कराने के बाद नष्ट हो जाते हैं। दाद,खाज,खुजली,छाजन, सेउआ एवं कोढ़ जैसे रोग यहां स्नान कर जल चढ़ाने से ठीक हो जाते हैं। कोढ़ रोग के घावों की जलन यहां मंदिर में प्रवेश करते ही शांत हो जाती है इसीलिए तो अक्सर देखा जाता है कि बालाजी के दरबार पर कोढिओं की लाइन लगी रहती है। बालाजी और कोढ़ी को लेकर एक कहावत प्रसिद्ध है जिसे अक्सर यहां के लोग कहते हुए देखते हैं कहा जाता है "कुढिया न छोड़े बालाजी को और बालाजी न छोड़े कुढ़िया को" इस मंदिर में हजारों वर्षों से अखंड ज्योति जल रही है इस ज्योति में घी डालने के लिए लोग शुद्ध घी अर्पित करते हैं । बालाजी मंदिर की यह सत्यता है कि यहां घी के कुएं भरे हुए हैं।
दुनिया मैं सबसे पुराना घी इस मंदिर में उपलब्ध है। अब यहां एक बड़ा प्रश्न पैदा होता है कि इतना घी यहां कैसे इकट्ठा हो गया तो यहां का एक सार्व भौम सत्य है कि बालाजी की ज्योति जलने के लिए परा (एक बर्तन) लगा हुआ है। परे के नीचे एक बड़ा बर्तन रखा जाता है यहां आने वाला हर श्रद्धालु बालाजी की पूजा अर्चना करने के बाद अखंड ज्योति के परे में घी निवेदित करता है। परा भर जाने के बाद घी नीचे रखे बर्तन में गिर जाता है यह घी पूरी तरह सुरक्षित रख दिया जाता है इस घी का उपयोग केवल बालाजी की बत्ती जलाने के लिए ही उपयोग किया जाता है।
यहां एक और सत्यता है कि इस घी को कोई पंडा, पुजारी, माली या अन्य कोई सेवक उपयोग नहीं कर सकता न ही इसे बेचा जा सकता है जो भी इस घी का उपयोग करता है या बेचता है वह कोढ़ी हो जाता है इस बात के अनेकों उदाहरण भी हैं इसी वजह से यहां पुराने से पुराना घी सुरक्षित है। वैसे तो यहां तमाम त्योहार मनाए जाते हैं किन बालाजी की रथयात्रा एवं बालाजी की होली समूचे बुंदेलखंड में प्रसिद्ध है। चैत्र कृष्ण पक्ष की पंचमी जिसे रंग पंचमी कहते हैं इस दिन यहां टेशू यानि पलाश के फूलों से बनाए गए रंग और गुलाल से भगवान बालाजी होली खेलते हैं। रविवार के दिन भक्त बालाजी के दरबार में जाते हैं और भगवान बालाजी के साथ होली खेलते हैं।
आज रविवार को रंग पंचमी होने के कारण भगवान बालाजी ने भक्तों के साथ जमकर होली खेले। बालाजी के भक्त कह रहे थे आज तो बालाजी हुरिया रहे हैं और बालाजी भी भक्तों के साथ जमकर हुरियाए।
क्या है मंदिर का रहस्य
कहा जाता है पहूज नदी के दूसरी तरफ एक टीला था उस टीले पर एक गाय जाती थी और वह अपना दूध उस टीले पर गिराती थी। गाय के मालिक जो यादव समाज से था जब उसने ऐसा देखा तो यह वाकया गांव के लोगों को बताया। कुछ दिनों बाद बालाजी ने एक व्यक्ति को स्वप्न दिया और वहां सूर्य यंत्र होने की बात कही उसके बाद ग्रामीणों ने वहां खुदाई की तो उन्हें भगवान बालाजी का विग्रह प्राप्त हुआ। अब छोटे से विग्रह को उठा कर किसी सुरक्षित जगह स्थापित कराने को एक चबूतरे का निर्माण किया गया।
चबूतरा तो निर्मित हो गया पूरे विधि विधान से विग्रह की पूजा अर्चना की किंतु यहां एक समस्या पैदा हो गई विग्रह जिसे एक आदमी आसानी से उठा सकता जिसे 10 लोग भी नहीं उठा सके तब तो समस्या और विकराल हो गई दूसरी रात फिर बालाजी ने एक माली को स्वप्न दिया और एक पंडित एक यादव एवं एक वही माली इनसे सूर्य यंत्र उठेगा।
जब इन तीनों ने मिलकर यंत्र को उठाया तो यंत्र आसानी से उठ गया। यंत्र को चबूतरे तक लाया गया और विधिवत रूप से यंत्र की स्थापना की गई। उस समय सूर्य कुल के राजा मरु का शासन था और इसकी खबर अयोध्या के महाराज भगवान दिनकर के वंशज मरु को पता चली तो उन्होंने एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया यह घटना त्रेता युग की बताई जाती है। तभी से सूर्य यंत्र इसी मंदिर में स्थापित है। पश्चात महाराज विक्रमादित्य ,दतिया के महाराज वीरसिंह जू देव ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।