बीजापुर : छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के चेरपाल गांव का बाजार स्थानीय संस्कृति, परंपरा और रंगीनता का प्रतीक है। यह बाजार मुख्य रूप से आदिवासी जीवनशैली और उनकी विशिष्ट वस्तुओं के लिए लंबे समय से जाना जा रहा है। यहां मिलने वाले उत्पाद और माहौल का रंग-रूप अद्वितीय है। यह विवरण चेरपाल बाजार की बदलती आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था को दर्शाता है।
अदान-प्रदान का था मुख्य साधन :
पहले जब वस्तु विनिमय का दौर था तब नमक जैसी दुर्लभ और महत्वपूर्ण वस्तु का उपयोग आदान-प्रदान के लिए किया जाता था। नमक को चिरौंजी जैसे वन उत्पादों के बदले दिया जाता था, क्योंकि नमक पहाड़ी और आदिवासी क्षेत्रों में आसानी से उपलब्ध नहीं था, जबकि चिरौंजी जंगलों में प्रचुर मात्रा में मिलती थी। पहले नमक की दुर्लभता और उसकी मांग के कारण यह आदान-प्रदान का मुख्य साधन था। समय के साथ कृषि और बाजार के विस्तार के कारण चावल जैसी बुनियादी चीजें अधिक उपलब्ध हो गईं। अब चावल एक ऐसी वस्तु बन गया है, जिसे आदान-प्रदान के लिए उपयोग किया जाता है।
आदिवासी समुदायों का पारंपरिक ज्ञान :
यह खासकर आदिवासी समुदायों में यह बदलाव स्थानीय समुदायों की बदलती प्राथमिकताओं और कृषि पर उनकी बढ़ती निर्भरता को दर्शाता है। यह बदलाव दर्शाता है कि कैसे आदिवासी समाज समय के साथ आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन बनाए हुए है। आज भी चिरौंजी और अन्य वन उत्पाद आदान-प्रदान में भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन आधुनिक कृषि उत्पादों का प्रभाव बढ़ गया है। यह उदाहरण इस बात का प्रतीक है कि कैसे एक समुदाय की आवश्यकताएं, संसाधन और आदान-प्रदान की प्रणाली समय के साथ बदलती हैं, लेकिन उसकी जड़ें पारंपरिक व्यवस्था में बनी रहती हैं।ऐसे ही सैकड़ों बाजार में से एक है चेरपाल का वीकली बाजार, जहां आकर आप आदिवासी समुदायों के पारंपरिक ज्ञान और संस्कृति को करीब से जान सकते हैं।
बीजापुर जिले के चेरपाल गांव का बाजार स्थानीय संस्कृति, परंपरा और रंगीनता का प्रतीक है। यह बाजार मुख्य रूप से आदिवासी जीवनशैली और उनकी विशिष्ट वस्तुओं के लिए लंबे समय से जाना जा रहा है. @DistrictBijapur #Chhattisgarh pic.twitter.com/CmreayxsFd
— Haribhoomi (@Haribhoomi95271) February 1, 2025