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बालोद के सियादेवी में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, जलप्रपात और गुफाओं के कारण बना है पर्यटकों की पहली पसंद

बालोद के सियादेवी में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, जलप्रपात और गुफाओं के कारण बना है पर्यटकों की पहली पसंद

रिपोर्टर - राहुल भूतड़ा 
बालोद :
छत्तीसगढ़ के बालोद में स्थित पर्यटक और धार्मिक स्थल सियादेवी  आध्यात्म एवं पर्यटक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। नवरात्रि में भक्तो की भीड़ माता के दर्शन के लिए उमड़ पड़ी है। सियादेवी में जलप्रपात एवं गुफाओं के कारण छत्तीसगढ़ में एक मात्र सुप्रसिद्ध पर्यटक स्थल बना हुआ हैं। सियादेवी में पुर्व दक्षिण से आने वाले झोलबाहरा और दक्षिण पश्चिम  से आने वाला तुमनाला का संगम देखते बनता है। 50 फीट की ऊंचाई से गिरने वाले जलप्रपात चट्टानों से टकराकर कोहरे मे परिवर्तित हो जाना इसके प्राकृतिक सौन्दर्य को परिलर्क्षित करती हैं। साथ ही 27 फुट रास्ते वाला गुफा एवं घना जंगल लोगों के कौतुहल का विषय बन जाता हैं। माँ  सियादेवी के इस प्राचीन स्थल की कहानी रामायण से मिलती है। जो भगवान राम के  वनवास के समय की गाथाओं को बताता है। 

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सुप्रसिद्ध माँ सियादेवी

पार्वती ने श्रीराम की लेनी चाही परीक्षा
बताया  जाता है कि एक बार त्रेता युग में भगवान शंकर कुंभज ऋषि के आश्रम से कथा सुनकर वापस अपने स्थान को जा रहे थे। उसी समय श्रीराम अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ सीता के वियोग में भटकते हुए दण्डक वन में पहुंचे  हुए थे। उस समय भगवान शंकर जी के साथ उनकी अर्धांगिनी माता पार्वती भी थी। सीता के वियोग में जंगल - जंगल भटक रहे रामजी को नर लीला करते देख कर शंकर जी ने श्री राम को प्रणाम किया। भगवान शंकर का रामजी प्रणाम को प्रणाम करना माता पार्वती को कुछ अटपटा सा लगा कि भोले नाथ साधारण राजकुमारो को कैसे प्रणाम कर रहे हैं जबकि वे स्वयं संसार के स्वामी है। पार्वती ने भगवान शंकर से अपनी शंका व्यक्त की। भगवान ने उनकी शंका समाधान करते हुए कहा कि वे साधारण  मनुष्य नही वरन परमात्मा है। इतने से पार्वती जी के शंका का समाधान नही हुआ और श्रीराम की परीक्षा लेने की जिद्द की।  

सियादेवी नाम कैसे पड़ा 
श्री राम की परीक्षा लेने के उद्देश्य से सीता का रूप धारण किया। भगवान राम उन्हें पहचान गये और उन्हें प्रमाण करते हुए कहा कि माता आप अकेली वन में किसलिए घूम रही है ? भगवान शिव  जी कहां है, पार्वती यह सुनकर संकोचवश  घबरा जाती है। भगवान राम यहां पर अपना अनंत रूप प्रगट करते है। इस प्रकार जहां पार्वती  ने सिया (सीता) का देह धारण किया उस स्थान का नाम सियादेवी हुआ।

 सतबहनी कैना लिंगों बाबा और हिंगलाजीन का पुराना स्थान 
सियादेवी के अनेक पौराणिक प्रमाण के अवशेष आज भी है। मां सियादेवी की सवारी शेर जो पत्थर के रूप में अनेक सांकलों से जकड़ी हुई 5000 वर्ष पुर्व की बताई जाती हैं। सियादेवी मंदिर के पूर्व दिशा की ओर 200 मी. की दुरी पर गढ़िया पाठ देवी का स्थान है। पास ही सतबहनी कैना लिंगों बाबा व दक्षिण में मां हिंगलाजीन (खप्परवाली) का पुराना स्थान है । मा सियादेवी में अनेक चमत्कारिक घटनाएं हुए है। 1994 में आषाढ़ में गांव में रहने वाली बालिका मानकी बाई 50 फीट उंचे झरने से गिर गई।  20 घण्टे बाद सकुशल मिली और भी चमत्कारिक घटनाएं मां सियादेवी में घटे है जिनका गुणगान यहां के बुजुर्ग करते है।      

राम वनगमन पथ में शामिल करने की मांग 
रामायण की कहानियों को दर्शाता ये सियादेवी में लोगों की अपार श्रद्धा है जहां अब लोगों की यह मांग उठने लगी है कि राम वनगमन मार्ग को लेकर अलग-अलग जगहों पर जिस प्रकार से विकास कार्य किए जा रहे हैं उसमें सियादेवी को भी जोड़ कर इसे विकसित किया जाए ताकि आने वाले दिनों में लोगों को यहां की त्रेता युग की कहानी और इस मनमोहक घने जंगल और जलप्रपात के साथ मां सियादेवी की महिमा के बारे में जान सकें। 


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