दिनेश निगम ‘त्यागी’ : सीएम डॉ. मोहन यादव और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरािदत्य सिंधिया के बीच केमिस्ट्री अच्छी देखने को मिल रही है। इसकी वजह खुद सिंधिया भी हैं। सिंधिया ने पार्टी नेतृत्व का भरोसा जीतने में कामयाबी हासिल की है। पार्टी आलाकमान उनके ग्वालियर स्थित महल जाकर उनकी खातिरदारी स्वीकार कर चुका है। संभवत: इसे ध्यान में रखकर मुख्यमंत्री डॉ. यादव भी अन्य नेताओं की तुलना में सिंधिया को ज्यादा तरजीह देते दिखते हैं। माधव नेशनल पार्क को टाइगर रिजर्व का दर्जा देने के मामले को ही ले लीजिए।
सिंधिया के प्रयास से इसे टाइगर रिजर्व का दर्जा देने का फैसला दिसंबर 2024 में ही ले लिया गया था लेकिन इसकी घोषणा मार्च में हुई। 10 मार्च को ज्योतिरादित्य के पिता स्व. माधव राव सिंधिया की जयंती होती है। इसकी वजह से सिंधिया परिवार का माधव राष्ट्रीय उद्यान से विशेष लगाव है। ज्योतिरादित्य की कोशिश होती है कि इस उद्यान से जुड़े सभी प्रमुख कार्य 10 मार्च को ही हों। इस मसले पर भी ऐसा ही हुआ। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने माधव राष्ट्रीय उद्यान को टाइगर रिजर्व का शुभारंभ 10 मार्च को ही किया।
सारी मार्यादाएं लांघ रहा भूपेंद्र-हेमंत के बीच विवाद
पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह और उप नेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे के बीच चल रहा विवाद मर्यादा की सारी सीमाएं लांघ रहा है। विधानसभा के अंदर इन दाेनों के बीच जैसा वाद-विवाद हुआ, उससे सदन की मर्यादा तार-तार थी। विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर को इस पर व्यवस्था देना पड़ी और सदन की गरिमामयी परंपरा की याद दिलाना पड़ी। व्यवस्था देते समय तोमर भावुक थे। तोमर ने अमर्यादित बहस कार्रवाई स्ो बाहर भी निकाल दी। इसके बाद भी भूपेंद्र और हेमंत के बीच विवाद थमा नहीं है। अब हेमंत ने भूपेंद्र को पागल कह कर उन्हें पागलखाने तक भेजने की बात कह दी है। भूपेंद्र का साथ देने कोई नेता सामने नहीं आ रहा। ठीक उसी तरह जैसे प्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल को पार्टी और सरकार में किसी का साथ नहीं मिला।
रुतबे वालों के लिए ये कानून कहां?
प्रदेश सरकार के कुछ नियम-कानून ऐसे हैं, जो कुछ अंतराल के बाद जारी होते रहते हैं। इनमें से एक है चार पहिया वाहनों के ऊपर लगे हूटर हटाने का अभियान। आदेश जारी होने के बाद सरकार के एक मंत्री का हूटर निकालते फोटो भी जारी हुआ था। हालांकि, सभी मंत्री ऐसे नहीं हैं। लेकिन इस नियम के अमल की हकीकत देखना है तो ऐसी जगह पहुंच जाइए, जहां मंत्रियों, विधायकों के साथ अन्य नेताओं की भीड़ पहुंचती है। तत्काल पता चल जाएगा कि यह कानून सिर्फ आम लोगों के लिए है, असरदारों के लिए नहीं। इस समय विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है। वहां पुलिस का बड़ा अमला तैनात रहता है। वहां हूटर लगे वाहनों की लंबी कतार देखने को मिल जाती है। सवाल यह है कि जब पुलिस में सभी वाहनों से हूटर हटवाने का दम नहीं है, तो यह आदेश बार-बार जारी कर अभियान चलाया ही क्यों जाता है?
‘बड़े मियां तो बड़े मियां, छोटे मियां सुभान अल्लाह’
हाल ही में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव गोपाल के गृह नगर गढ़ाकोटा रहस मेला कार्यक्रम में पहुंचे। उन्होंने भी कहा कि ‘बड़े मियां तो बड़े मियां, छोटे मियां सुभान अल्लाह’। उन्होंने कहा कि दीपू भाई (अभिषेक) बढ़िया भाषण देते हैं। उनके पिता और हम सबसे वरिष्ठ गोपाल भार्गव का पूरा चुनाव वे ही देखते हैं। भार्गव जी एक भी दिन के लिए प्रचार के लिए नहीं निकलते, तब भी रिकॉर्ड वोटों के अंतर से जीतते हैं। इससे पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी अभिषेक की चाहे जब तारीफ करते थे। हालांिक, दीपू को उनकी योग्यता के अनुसार आज तक कोई पद नहीं मिला।
चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते कांग्रेस प्रभारी?
कांग्रेस नेताओं के अंदर चलने वाला शह-मात का खेल प्रदेश में पार्टी की दुर्दशा की एक वजह है। कांग्रेस के नए प्रदेश प्रभारी हरीश चौधरी के आने के बाद भी यह खेल थमा नहीं है। इससे पहले जब भंवर जितेंद्र सिंह प्रदेश प्रभारी थे, तब से प्रदेश में जिला एवं ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्षों के चयन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी। चयन प्रक्रिया पूरी कर सूची भी कांग्रेस नेतृत्व के पास भेज दी गई थी। सूची को केंद्र से हरी झंडी मिल नहीं पाई और जितेंद्र के स्थान पर हरीश चौधरी प्रभारी बन कर आ गए।
लिहाजा, पार्टी के कुछ नेता नए प्रभारी के जरिए अपनी चाहत पूरी करने में जुट गए। इसकी भनक जैसे ही प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी को लगी, उन्होंने आनन- फानन भंवर जितेंद्र की सिफारिश लगवा कर केंद्रीय नेतृत्व से जिलाध्यक्षों की सूची स्वीकृत करा ली। हरीश चौधरी अब चाह कर भी उसमें ज्यादा कुछ नहीं कर सकते। हालांकि वे चाहेंगे तो अपनी पसंद के कुछ नाम जोड़-घटा सकते हैं। ब्लॉक अध्यक्षों को लेकर सहमति बन गई है कि यह सूची चौधरी की स्वीकृति के बाद ही आगे बढ़ेगी।