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विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व का आज होगा समापन, रथ परिक्रमा और बाहर रैनी रस्म के साथ होगा समापन 

विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व का आज होगा समापन, रथ परिक्रमा और बाहर रैनी रस्म के साथ होगा समापन 

रिपोर्टर - जीवानंद हलधर // जगदलपुर। विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व में आज रथ परिक्रमा का समापन हो गया है और इस आखिरी रथ परिक्रमा के रस्म को "बाहर रैनी" रस्म कहा जाता है. माड़िया जनजाति के ग्रामीण परंपरानुसार 8 पहिए वाले रथ को चुराकर कुम्हड़ाकोट जंगल ले जाते हैं जिसके बाद राज परिवार के सदस्य कुम्हड़ाकोट पहुंचकर ग्रामीणों को मनाकर और उनके साथ नए चावल से बने खीर नवाखानी (नवाखाई) के बाद रथ को वापस शाही अंदाज में राजमहल लाया जाता है.

6 दिनों तक होती है रथ परिक्रमा
इस रस्म को बाहर रैनी रस्म कहा जाता हैं. इस महत्वपूर्ण रस्म में बस्तर संभाग के असंख्य देवी देवता के छत्र-डोली शामिल होते हैं. बताया जाता है कि बस्तर के राजा पुरषोत्तम देव ने जगन्नाथपुरी से रथपति की उपाधि मिलने के बाद बस्तर में दशहरे के अवसर पर रथ परिक्रमा की प्रथा आरंभ की थी जो कि आज तक अनवरत चली आ रही है. 6 दिनों तक चलने वाले रथ परिक्रमा में विजया दशमी के दिन भीतर रैनी की रस्म पूरी की जाती है जिसमें परंपरा के मुताबिक माड़िया जाति के ग्रामीण शहर के बीच स्थित सिरहसार भवन से आधी रात को रथ चुराकर मंदिर से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कुम्हड़ाकोट जगंल ले जाते हैं। 

रश्मों को देखने देशभर से उमड़ा जनसैलाब 
आज बस्तर राजपरिवार के राजकुमार कमलचंद भंजदेव शाही अंदाज और लाव लश्कर के साथ कुम्हड़ाकोट पहुंचते हैं यहां वे ग्रामीणों के सथ नए चावल से बनी नवाखानी  खाते हैं और  ग्रामीणों को मान मनोवल कर समझा-बुझाकर रथ को वापस शहर लाया जाता है. आज भी बस्तर के राजकुमार की मौजूदगी में दशहरा के सभी रस्मों को विधि विधान से पूरा किया जाता है.  विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा के इस आखिरी रस्म को देखने हर साल लोगों का जनसैलाब उमड़ पड़ता है. वही अब 75 दिनों तक चलने वाला महापर्व माता की विदाई के साथ ही आज समाप्त हो जाएगी।

कमलचंद भंजदेव, बस्तर महाराजा


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