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Mahashivratri Special Trimbakeshwar Jyotirlinga : दंड नहीं आश्रय को चुना, महर्षि गौतम के अनुरोध पर स्थापित हुए त्र्यंबकेश्वर

Mahashivratri Special Trimbakeshwar Jyotirlinga : दंड नहीं आश्रय को चुना, महर्षि गौतम के अनुरोध पर स्थापित हुए त्र्यंबकेश्वर

भोपाल। ज्योतिर्लिंग यूं तो केवल भगवान शिव का ही होता है, लेकिन ये ज्योतिर्लिंग पूरी दुनिया में इकलौता ऐसा ज्यतिर्लिंग है जो त्रिदेव का है। जी हां यहां केवल शिव नहीं, बल्कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों विराजते हैं। ये ज्योतिर्लिंग एकदम अनूठा है, क्योंकि इसमें लिंगम भी ऊपर नहीं है। यहां तीन लिंगम हैं जो आकार में काफी छोटे और जलाधारी के बीच एक गड्ढे में स्थापित हैं। हम बात कर रहे हैं अपने भक्त महर्षि गौतम को उनके साथ किए छल के बारे में बताने आए महादेव की, जो गौतम ऋषि के कहने पर यहीं ज्योति रूप में स्थापित हो गए और त्र्यंबकेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुए। 12 दिन 12 ज्योतिर्लिंग की इस शृंखला में आज हम आदिदेव के आठवें ज्योतिर्लिंग के रूप में मान्यता प्राप्त त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं। इस ज्योतिर्लिंग के पास ही गंगा मां अपने गोदावरी स्वरूप में विराजमान हैं। इस मंदिर की स्थापना ऋषियों द्वारा किए गए षड्यंत्र का नतीजा है। गौहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए महर्षि गौतम ने इस स्थान पर महादेव से प्रार्थना की थी। तो चलिए जानते हैं उन किवदंतियों के बारे में जो बताती हैं कि आखिर कैसे एक महर्षि पर गौहत्या का पाप लगा। साथ ही कैसे ऋषियों द्वारा एक महर्षि को परेशान किया गया। 

महर्षि गौतम पर लगा गौहत्या का पाप, फिर प्रकट हुए भोलेनाथ

त्र्यंबकेश्वर ज्यतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक जिले में त्र्यंबक गांव में स्थापित है। इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना के बारे में जो किवदंति है वह ऋषियों के मन में आए द्वेष की परिचायक है। सामान्य मनुष्य की तरह एक ऋषि भी इस तरह की प्रवृत्ति ला सकता है, लेकिन एक महर्षि कितना दयालु और सहज होता है इस भाव को भी आप इस किवदंति से समझ सकते हैं। कहा जाता है कि आदिकाल में महर्षि गौतम के ही तपोवन में रहने वाले ऋषियों की पत्नियां, गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या से किसी बात को लेकर नाराज हो गई। ईर्ष्या के चलते वे सभी अपने पतियों से ऋषि गौतम का अपमान करने को कहने लगी। साथ ही उन्हें इस तपोवन से बाहर निकाल देने की बात भी कह दी। इसके बाद सभी ऋषियों ने भगवान गणेश की आराधना की और उन्हें मनाया। गणेश जी ने इन ऋषियों की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए। लेकिन उन ऋषियों के मन में संसार के लिए किसी प्रकार की मांग नहीं थी। बल्कि अपनी पत्नियों के बहकावे में आए वे सभी गौतम ऋषि के लिए अहित की कामना करने वाले थे। उन्होंने गणेश जी से प्रार्थना करते हुए कहा कि हे प्रभु ऋषि गौतम को इस तपोवन से बाहर निकाल दीजिए। उनकी इस प्रकार की कामने से गणेश जी ने उन्हें समझाने का प्रयास किया, और ऐसी कामना करने से मना भी किया, लेकिन वे सभी गणेश जी की बात नहीं माने, अपनी बात को लेकर अड़े रहे।

आखिर विवश होकर गणेश जी ने उनकी इस कामना को मान लिया। महर्षि को बाहर निकालने के लए वे एक अत्यंत ही कमजोर गाय का भेष धारम कर महर्षि गौतम के खेत में जा कर चरने लगे। महर्षि गौतम की नज़र पड़ते ही वे सहज भाव से बड़ी नरमी के साथ उस गाय को खेत से बाहर निकालने एक तृण लेकर गए। उन्होंने जैसे ही उस गाय को धीरे से ये तृण मारा गाय तुरंत मर गई। मौके की तलाश कर रहे सभी ऋषि अब महर्षि गौतम पर गौहत्या किए जाने का आरोप लगाने लगे। इसी आरोप के साथ उन्होंने महर्षि गौतम को तपोवन छोड़ दने को कहा। क्योंकि वे एक गौ की हत्या करने वाले पापी के साथ नहीं रहना चाहते थे। सभी की बात मानकर महर्षि उस तपोवन से एक कोस दूर जाकर रहने लगे। 

महर्षि गौतम के दूर रहने पर भी बाकी ऋषियों को संतोष नहीं था। वे अब इन्हें हवन यज्ञादि करने से मना करने लगे, कि गौहत्या के कारण अब तुम्हें पूजा-पाठ हवन इत्यादि करने का अधिकार नहीं है। महर्षि गौतम के इस अधिकार को छीन लेने पर उन्होंने सभी ऋषियों से इस बारे में कोई पाय बताने को कहा। तब ऋषियों ने बताया कि तुम अपने पाप को सर्वत्र सबको बताते हुए तीन बार पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करो। फिर लौटकर यहाँ एक महीने तक व्रत करो। इसके बाद 'ब्रह्मगिरी' की 101 परिक्रमा करने के बाद तुम्हारी शुद्धि होगी। इसके अवाला दूसरा उपाय पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि यहाँ गंगाजी को लाकर उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंगों से शिवजी की आराधना करो। इसके बाद पुनः गंगाजी में स्नान करके इस ब्रह्मगीरि की 11 बार परिक्रमा करो। फिर सौ घड़ों के पवित्र जल से पार्थिव शिवलिंगों को स्नान कराने से तुम्हारा उद्धार होगा। महर्षि गौतम ने दूसरा उपाय किया, उन्होंने सारे कार्य पूर्ण करके अपनी पत्नी के साथ तल्लीनता से महादेव का पूजन किया।

महर्षि गौतम की इस तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें दर्शन दिए। स्वयं शिव को सामने देखकर गौतम के हर्ष का ठिकाना न रहा। भगवान ने उनसे वरदान मांगने को कहा, तह महर्षि गौतम ने अपने ऊपर लगे गौहत्या के पाप से मुक्ति देने की प्रार्थना की। महर्षि गौतम की इस कामना को सुनकर महादेव ने अन्य ऋषियों द्वारा किए गए षड्यंत्र के बारे में गौतम ऋषि को सब बता दिया। साथ ही कहा कि उनके इस कृत्य के लिए मैं उन सभी ऋषियों को दंड दूंगा। भोलेनाथ की स बात को सुनकर महर्षि ने ऐसा न किए जाने की प्रार्थना की, उनका कहना था कि ऋषियों के इस कृत्य से ही मुझे आपके दर्शन का सौभाग्य मिल पाया है, तो इसे एक पुण्य का काम मानकर उन्हें क्षमा कर दें। महर्षि गौतम ने दंड दिए जाने की बजाय यहीं रहने की प्रार्थना की। सभी देवी-देवताओं ने भी इस बात का समर्थन किया, सबकी बात मानकर भोलेनाथ यहां त्र्यंबकेश्वर के रूप में विराजनाम हो गए। 

शिवलिंग में अंगूठेनुमा उभार

इस मंदिर में दर्शन के लिए आने पर आपको कई सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। इसके बाद भी आपको शिवलिंग के दर्शन नहीं होते हैं। क्योंकि इस मंदिर में शिवलिंग ऊपर उठा हुआ नहीं है। इस शिवलिंग के दर्शन करने के लिए आपको पास ही जाना होता है। इस अनूठे शिवलिंग की जलाधारी में एक गड्ढा है जिसमें तीन उभारों के रूप में लिंगम स्थापित है। ये तीनों अंगूठेनुमा उभार ब्रह्मा विष्णु और महेश के परिचायक माने जाते हैं। इसी मंदिर में भोर के समय होने वाली पूजा में एक चांदी का पंचमुखी मुकुट इस स्थान पर रख दिया जाता है। कहा जाता है कि ये मुकुट पांडवों के समय का है और इसमें कई प्रकार के रत्नादि जड़े हुए हैं। यहां के ब्रह्मगिरी पर्वत पर 700 सीढ़ियां हैं इनपर चढ़ने से रामकुंड और लक्षमण कुंड मिलते हैं। इनके बाद शिखर पर गौमुख से गोदावरी नदी का उद्गम मिलता है। 

धार्मिक मान्यता

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में विभिन्न प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान कराए जाते हैं। जिनमें नारायण नागदोष की पूजा को सबसे खास माना गया है। कहा जाता है कि ये पूजा केवल यहीं कराई जाती है। इसके अलावा यहां कालसर्प शांति, त्रिपिंडी विधि भी कराई जाती है। यहां आने वाले लोग अलग-अलग समस्याओं के लिए पूजा कराया करते हैं। इन पूजाओं को भी नियत दिनों पर ही कराया जाता है। हर किसी तिथि पर इन्हें नहीं कराया जा सकता। इन तिथियों का निर्धारण पंचांग द्वारा किया जाता है। इस मंदिर में लोग सांप को मारने के पाप से छुटकारा, कभी संतान फल प्राप्ति के लिए पूजा, बुरे समय से बचने के लिए या कई बार बीमारी ठीक करने के लिए भी इस मंदिर में पूजा कराई जाती है। इस मंदिर को वैदिक गुरुकुल परंपरा के लिए भी जाना जाता है। यहां हिन्दु जीवन, अष्टांग योग सिखाने के लिए आश्रम और मठ भी हैं। 
 


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