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संत सियाराम बाबा : मोक्षदा एकादशी पर मोक्ष यात्रा पर निकले संत सियाराम बाबा

संत सियाराम बाबा : मोक्षदा एकादशी पर मोक्ष यात्रा पर निकले संत सियाराम बाबा

संत सियाराम बाबा : सियाराम बाबा के नाम से देश में प्रसिद्ध संत सियाराम बाबा अपने महाप्रस्थान का दिन भी उसी तरह पवित्र चुना, जैसे वे स्वयं थे। सियाराम बाबा 116 बरस की आयु को तो कब से ही प्राप्त कर चुके थे। उम्र का आंकड़ा उनके लिए शून्य ही था। वे तो अनंत थे और आज उसी अनंत की यात्रा पर चल दिए। पीछे रह गए रोते-बिलखते हजारों लोग। जैसे ही बाबा के निधन की खबर समूचे मध्यप्रदेश में फैली तो हर तरफ शोक की लहर ​थी। प्रदेश के मुखिया मोहन यादव भी स्तब्ध रह गए। उन्होंने मंगलवार को अपने सारे तय कार्यक्रम निरस्त कर दिए।

बाबा की यात्रा में सीएम मोहन

मुख्यमंत्री स्वयं बाबा की अंतिम यात्रा में शामिल होंगे। बाबा का डोला दोपहर 3 बजे बाद निकाले जाने की खबर है। मिली जानकारी के मुताबिक अलसुबह से बाबा के खरगोन जिले स्थित आश्रम पर जनसैलाब उमड़ गया। बाबा कुछ दिन से अस्वस्थ थे। बताते हैं उन्हें निमोनिया हो गया था, लेकिन उन्होंने अस्पताल में उपचार होने के बजाय अपने राघवेंद्र सरकार व हनुमंतलाल की शरण में आश्रम में आने का ही मन बना लिया, जहां आज मोक्ष एकादशी की सुबह 6 बजे उन्होंने अपनी देह त्याग दी। सियाराम बाबा के अस्वस्थता की खबरे बीते तीन-चार दिन से सामने आ रही थी। एक दो बार तो उनके ​निधन की खबर भी वायरल हुई, लेकिन संत सियाराम बाबा ने अपनी अनंत यात्रा के लिए ग्यारस का पवित्र दिन चुन रखा था। जब दुनिया सर्द हवा से ठिठुरती हुई रजाइयों में दुबकी थी, तब वे चुपके से उठकर अनंत यात्रा पर चल दिए।

दौलत से दूर रहे बाबा 

सियाराम बाबा अपनी जीवन यात्रा में बता गए कि एक संत का जीवन कैसा होता है। उनकी देह जरूर जर्जर थी, लेकिन राम-हनुमान भक्ति व मां रेवा के प्रति उनका प्रेम विराट था। उन्होंने अपने जीवन में कभी वैभव नही चुना, वे धन दौलत से भी कोसो दूर रहे। अगर कोई प्रेमी उन्हें भेंट देना चाहा तो मात्र दस रुपए की भेंट स्वीकार करते थे सियाराम बाबा। जो उन्हें भेंट मिलती थी उसे भी वे आश्रम पर खर्च कर देते थे। सियाराम बाबा चाहते तो भव्य आश्रम का निर्माण पलभर में कर लेते, क्यों​कि उनके भक्त लाखों रुपए लेकर उन तक पहुंचते थे, लेकिन उनके लिए वो लाखों रूपये किसी काम के नहीं थे। 

कमर झुकी, लेकिन अंतिम समय तक तनी

बाबा सियाराम की कमर जरुर झुकी हुई थी, लेकिन संत जीवन की रीढ़ अंतिम समय तक तनी हुई थी। वे संत समाज के लिए एक पवित्र रेखा खींच गए। आज जहां नर्मदा किनारे भव्य और वैभवशाली आश्रमों के निर्माण का चलन तेजी से बढ़ा है, वहां बाबा की वो घासफूस की कुटिया बताती है कि असली संत क्या होता है और उसके लिए सर्व-सुविधाओं से लैस मठ-मंदिर-आश्रम की क्या उपयोगिता है? आज नर्मदा का तट, निमाड़ की माटी धन्य हो गई। जिसे एक ऐसे संत का सान्निध्य मिला।

हनुमानजी के थे परम भक्त

कई वर्षों तक गुरु के साथ शिक्षा ग्रहण की और कई तीर्थ भ्रमण किया। 1962 में वे भठ्याण आए थे। उन्होंने एक वृक्ष के नीचे मौन रहकर रहकर तपस्या की। उनकी साधना पूरी हुई तो उन्होंने सियाराम का उच्चारण किया। इसके बाद से वे सियाराम बाबा के नाम से जाने जाते हैं। सियाराम बाबा खरगोन के नर्मदा नदी के घाट पर स्थित भट्याण आश्रम में रहते थे। वह हनुमान जी के परम भक्त थे। हमेशा रामचरिस मानस का पाठ किया करते थे। कहा जाता है कि सातवीं क्लास की शिक्षाके बाद किसी संत के संपर्क में आए। उसके बाद उन्होंने घर छोड़ दिया। फिर तपस्या के लिए हिमाचल चले गए।

केवल लंगोट पहना करते थे

कड़ाके की सर्दी हो या बारिश सियाराम बाबा के बारे में कहा जाता है कि वह एक लंगोट में रहते थे। ध्यान के दम पर उन्होंने अपने शरीर को मौसम के अनुकूल बना लिया था। वह अपना सारा काम खुद करते थे। संत सियाराम करीब 12 साल तक मौन व्रत में रहे।

एक पैर पर की तपस्या

आपको बता दें कि संत सियाराम बाबा खरगोन के नर्मदा नदी के तट पर स्थित भट्यान गांव के आश्रम में रहते थे। उनकी उम्र 116 साल थी। बताया जाता है कि बाबा ने एक पैर पर खड़े होकर 10 साल तम तपस्या की थी। 109 साल की उम्र होने के बाद भी बाबा बिना चश्मे के रामायण जी का पाठ करते थे। वे अपना सार का खुद करते थे। 


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