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चुनावी किस्सा : 6 साल तक मतदान नही कर पाए थे बाल ठाकरे, छीन लिया था अधिकार

चुनावी किस्सा : 6 साल तक मतदान नही कर पाए थे बाल ठाकरे, छीन लिया था अधिकार

चुनावी किस्सा : देश में इन दिनों लोकसभा चुनावों का मतदान किया जा रहा है। देश के कई प्रदेशों में चार चरण में मतदान हो चुका है तो कई प्रदेशों में अभी भी तीन चरण बाकी है। चुनावों के बीच आपने कई बार आचार संहिता का उल्लंघन होने की बात सुनी होगी।

आचार संहिता के उल्लंघन पर चुनाव आयोग संबंधित दलों और नेताओं को नोटिस देकर जबाव मांगता है। जबाव नहीं मिलने पर आयोग कार्रवाई भी करता है। आज हम यह बात उस किस्से को याद करते हुए कर हें जब आचार संहिता के उल्लंघन के मामले में शिवसेना के सबसे बड़े नेता बाल ठाकरे को देश के राष्ट्रपति ने सजा दी थी और उनसे 6 सालों तक मतदान करने का अधिकार छीन लिया गया था। 

विले पार्ले 1987 उपचुनाव 

दरसअल, बात 1987 की है। जब महाराष्ट्र की विले पार्ले विधानसभा में उपचुनाव होना था। कांग्रेस ने प्रभाकर काशीनाथ को उम्मीदवार बनाया था, तो वही निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर डॉ रमेश प्रभु यशवंत सिंह मैदान में थे। यशवंत सिंह बाल ठाकरे के करीबी मानते जाते थे, इसलिए उन्हें शिवसेना ने समर्थन दिया था। हालांकि उस समय शिवसेना राजनीतिक दल नहीं था, लेकिन शिवसेना का अच्छा खासा दवदवा था। रमेश प्रभु के लिए खुद शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे वोट मांगने के लिए मैदान में उतरे थे। 

रमेश प्रभु ने जीता उपचुनाव 

विले पार्ले सीट पर हुए उपचुनाव का मतदान 13 दिसंबर 1987 को हुआ और परिणाम 14 दिसंबर को आया। चुनाव परिणाम में रमेश प्रभु को जीत मिली। विले पार्ले विधानसभा सीट रमेश प्रभु से पहले कांग्रेस का गढ़ रही थी। उपचुनाव हारे कांग्रेस के प्रभाकर कुंटे ने हाई कोर्ट की शरण ली। प्रभाकर ने रमेश प्रभु और बाल ठाकरे पर भड़काऊ और नफरत फैलाने वाले बयानों का हवाला देते हुए उनके गलत तरीके से चुनाव जीतने की अपील करते हुए चुनाव निरस्त करने का अनुरोध किया।

इसके बाद मामला दो साल तक चला और हाई कोर्ट ने 1989़ में 7 अप्रैल को फैसला सुनाते हुए लोक प्रतिनिधित्व कानून के उल्लंघन का दोषी करार देते हुए उपचुनाव को रद्द कर दिया। फैसले को चुनौती देने के लिए रमेश प्रभु ने सुप्रीम कोर्ट का दरबाजा भी खटखटाया, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा। 

राष्ट्रपति के समक्ष पहुंचा मामला 

सुप्रीम कोर्ट ने उपचुनाव तो रद्द कर दिया, लेकिन बाल ठाकरे की सजा पर मामला फंस गया। दरअसल, रमेश प्रभु का चुनाव बाल ठाकरे के भाषणों के चलते रद्द हुआ था, उस समय वे किसी भी पद पर नहीं थे, ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने मामला राष्ट्रपति के समक्ष भेज दिया। उस दौर में केआर नारायणन राष्ट्रपति थे। 

ठाकरे से छिना मतदान का अधिकार

जब मामला राष्ट्रपति के पास पहुंच तो उन्होंने मामले को चुनाव आयोग को भेज दिया। चुनाव आयोग ने 1998 में 22 सितंबर को अपनी रिपोर्ट पेश की। चुनाव आयोग की रिपोर्ट पर राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी। चुनाव आयोग ने रिपोर्ट में बाल ठाकरे पर 6 सात तक मतदान का अधिकार निरस्त करने की बात कही थी। इसके बाद बाल ठाकरे से 6 साल तक के लिए मतदान करने का अधिकार छीन लिया गया। जिसके चलते बाल ठाकरे 6 साल तक वोट नहीं डाल सके। 


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