बीजापुर : प्रदेश के बीजापुर जिले में माओवाद के खिलाफ साल 2005 में एक स्वस्फूर्त जन आंदोलन हुंकार भर चुका था। जिसे नाम दिया गया था सलवा जूडुम का। जिसे अगले पांच सालों तक जुडूम जारी रहा। हालांकि इसके बाद साल 2010 में सुको ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया।दरअसल दक्षिण बस्तर में जुडूम ही वह दौर था। जब नक्सलियों ने बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा के अंदरूनी इलाकों में संचालित स्कूल, आश्रम, छात्रावासों को निशाना बनाया था। दर्जनों स्कूल नक्सलियों के निशाने पर आए तो कई बढ़ते लाल आतंक के चलते बंद हो गए। दौर बदला तो हालात भी बदलने लगे।
दर्जनों स्कूलों को हाल बेहाल :
तत्कालीन भूपेश सरकार में डेढ़ दशक से बंद पड़े स्कूलों को पुनः संचालित करने की मुहिम शुरू हुई। इस काम को शिक्षा विभाग ने लगन से आगे बढ़ाया। नतीजा ये रहा कि धुर माओवाद प्रभावित इलाकों में वर्षों बाद स्कूल की घंटियां बजने लगी। पिछली और मौजूदा सरकार ने इसकी वाह-वाह ली, लेकिन वाह-वाह के बीच दर्जनों स्कूलों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है।मुनगा में संचालित संयुक्त स्कूल इसका जीवित प्रमाण है।बीजापुर जिला मुख्यालय से लगभग 21 किमी दूर मुनगा पहाड़-जंगल से घिरा छोटा से गांव है।
भवन के लिए होता रहा पत्राचार :
गांव बेहद ही संवेदनशील है, बावजूद शिक्षा विभाग के प्रयत्नों से साल 2022 में गांव में दो प्राइमरी स्कूल का संचालन संभव हो पाया। विभाग ने जैसे-तैसे स्कूल तो खोल दिया, परंतु बीते दो वर्षों के भीतर पढ़ने वाले बच्चों के लिए प्रशासन पक्की स्कूल बिल्डिंग का निर्माण नहीं करा सका,नतीजतन स्कूल पहले कोठार में संचालित हुआ फिर पेड़ और तिरपाल के नीचे लगने के बाद दोबारा अब गांव में ही उधारी के झोपड़ी में संचालित है। इस मामले में शिक्षक रेहान बताते हैं कि स्कूल जब से शुरू हुआ है पक्की बिल्डिंग की आवश्यकता महसूस की जा रही हैं। भवन के लिए समय समय पर पत्राचार होता रहा है। निविदा प्रक्रिया पूरी हो गई है ऐसी जानकारी भी मिली है, बावजूद बिल्डिंग का काम शुरू नहीं हुआ।
कोठार में गढ़ रहे भविष्य :
नतीजतन बच्चे कोठार में बैठकर पढ़ रहे हैं। मध्यान्ह भोजन भी खुले में पकता हैं। पहले बरसात और जब सर्दियों के मौसम में बच्चों को परेशानी हो रही है, इसके अलावा यहां एक नहीं बल्कि दो स्कूल एक साथ संचालित हैं।दोनों स्कूल को मिलाकर 70 बच्चे दर्ज है और कोठार में इतने बच्चों को एक साथ बैठाकर पढ़ा पान संभव नहीं हैं। कोठार की बल्लियों पर व्हाइट बोर्ड टांगकर किसी तरह बच्चों को पढ़ा रहे, उनका इम्तिहान ले रहे और परेशानियों से दो-चार होकर नौनिहाल भी जैसे-तैसे अपना भविष्य कोठार में गढ़ रहे हैं। इस संबंध में जिला शिक्षा अधिकारी धनेलिया ने फोन पर चर्चा में कहा कि पूरे विषय से अवगत होकर वे जानकारी देंगे।