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महिलाओं पर बोलीं ममता चंद्राकर - अदम्य साहस की प्रेरक उदाहरण है भारतीय स्त्री

महिलाओं पर बोलीं ममता चंद्राकर - अदम्य साहस की प्रेरक उदाहरण है भारतीय स्त्री

खैरागढ़। प्रयत्न की ऊँचाई जहाँ बड़ी हो जाती है, वहां लक्ष्य छोटा हो ही जाता है। भारतीय स्त्री ने अपनी योग्यता और क्षमता से इस वाक्य को सही साबित किया है।

उक्त बातें इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय की कुलपति, प्रख्यात लोकगायिका और पद्मश्री से सम्मानित ममता मोक्षदा चंद्राकर ने कही। वे अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर केन्द्रीय विश्वविद्यालय में आयोजित एक परिचर्चा में मुख्य अतिथि के रूप में कार्यक्रम में संबोधित कर रहीं थीं। बेहतर कल के लिए लैंगिक समानता विषय पर आयोजित उक्त संगोष्ठी में पद्मश्री ममता चंद्राकर ने कहा कि एक महिला के संघर्ष में बहुत कुछ दांव पर लग जाता है।

उन्होंने कला और संगीत को लेकर स्वयं के संघर्ष की प्रेरणास्पद कहानी सारगर्भित ढंग से बताते हुए कहा कि ऐसे प्रयासों को जब समाज सम्मान की दृष्टि से देखता है, तो आत्मिक खुशी मिलती है। पद्मश्री ममता चंद्राकर ने आगे कहा कि प्रयत्न की ऊँचाई जहाँ बड़ी हो जाती है, वहाँ लक्ष्य को छोटा होने पर विवश होना पड़ता है। भारतीय स्त्री इसका उदाहरण है।

उन्होंने कहा- यहां तक पहुंचने के लिए मैंने स्वयं भी संघर्ष किया। मैं गीत-संगीत की ऐसी विधा से आती हूँ, जो कि सामान्यतः उपेक्षा का शिकार रहा। आमतौर पर मान लिया जाता है कि कला-गीत-संगीत महिलाओं के लिए है ही नही। ऐसे में इस विधा को सम्मान दिलाने के लिए मेरी जैसी कितनी महिलाओं ने संघर्ष किया। संघर्ष में बहुत-कुछ दांव पर लग जाता है। लम्बे संघर्ष के बाद जब समाज में इसे सम्मानित दृष्टि से देखा जाता है तो इस बात की हार्दिक खुशी होती है कि हमारे प्रयासों को हमारी नई पीढ़ी ससम्मान स्वीकार कर रही है।

हमारे इतिहास में महिलाओं को सम्मान दिलाने के लिए पूरा जीवन संघर्ष करते हुए प्रेरणा बनने वाली उदाहरणों की कमी नहीं है। छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके महिला संघर्ष की बड़ी उदाहरण है। जनजातीय परिवार में जन्म लेकर जीवन की विभिन्न चुनौतियों का सामना करते हुए जीवन के हर पड़ाव को उपलब्धि में तब्दील कर देना आसान नहीं हैं, लेकिन महामहिम अनुसुइया उइके वह उदाहरण हैं जो हम सभी महिलाओं को सकारात्मक संघर्ष की प्रेरणा देते हुए संकेत देती हैं कि मेहनत और संघर्ष ईमानदारी से भरा हो तो हर चुनौती को सफलता में और हर पड़ाव को उपलब्धि में बदला जा सकता है।

आज तो कई ऐसे प्रतिष्ठान एवं संस्थाएं हैं, जो महिलाओं के नेतृत्व में सफलतापूर्वक संचालित हो रहे हैं। हालांकि यहां तक का सफर तय करने के लिए महिलाओं को काफी मुश्किलों एवं संघर्षों का सामना करना पड़ा है और महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए अभी आगे मीलों लम्बा सफर तय करना है, जो दुर्गम एवं मुश्किल तो है लेकिन महिलाओं ने ही ये साबित किया है कि वो हर कार्य को करने में सक्षम हैं। आज समाज में लैंगिक समानता को प्राथमिकता देने से भी लोगों की सोच में बहुत भारी बदलाव आया है।

अधिकारिक तौर पर भी अब नारी को पुरुष से कमतर नहीं आंका जाता। यही कारण है कि महिलाएं पहले से अधिक सशक्त और आत्मनिर्भर हुई हैं। जीवन के हर क्षेत्र में वे पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मजबूती से खड़ी हैं और आत्मबल, आत्मविश्वास एवं स्वावलंबन से अपनी सभी जिम्मेदारी निभा रही हैं। वर्तमान में महिला को अबला नारी मानना गलत होगा। आज की नारी पढ़-लिखकर सबल एवं स्वतंत्र है। वह अपने अधिकारों के प्रति सजग भी है। आज की नारी अपना स्वयं निर्णय लेती है।

गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय बिलासपुर और इन्दिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ दोनों देश के प्रतिष्ठित संस्थान हैं, जो मिलकर बहुत-कुछ ऐसा कर सकते हैं जो राष्ट्र निर्माण में काम आयेगा। आप सब जानते हैं कि यह विश्वविद्यालय अपेक्षाकृत उतना ही नया है, जितना की खैरागढ़ विश्वविद्यालय पुराना है। नये और पुराने के मिलाप से जो आधुनिकता जन्म लेती है वही आने वाली पीढ़ी के लिए दिग्दर्शक साबित होती है।

हम दोनों संस्थान इस समय यह काम बहुत अच्छे ढंग से कर सकते है। यह अभी इसलिए भी संभव है क्योंकि आप के पास कुलपति प्रो. आलोक कुमार चक्रवाल के रूप में एक बहुत ही अनुभवी और सक्षम नेतृत्व है। हम यह बात उस बिलासपुर की धरती पर खड़े होकर कर रहे है, जिस बिलासपुर को महिला सशक्तिकरण की अप्रतिम उदाहरण बिलासा बाई केंवटीन ने बसाया था। जिस दौर में महिलाओं का घर की दहलीज से बाहर कदम रखना दूभर था, उस दौर में संघर्ष करते हुए बिलासा बाई केंवटीन ने अरपा नदी के तट पर इस खूबसूरत शहर को बसाया था। महिला सशक्तिकरण की अदम्य उदाहरण बिलासा दाई केंवटीन के सामाजिक योगदान से हम सदैव प्रेरणा लेते रहें।

महिला दिवस के अवसर पर हमारी सामूहिक इच्छा होनी चाहिए कि महिलाओं को चाहे घर हो या बाहर हो समाज में वह सम्मान अवश्य ही देना चाहिए जिसका वे हकदार हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आलोक कुमार चक्रवाल ने अपने संक्षिप्त किंतु आकर्षक संबोधन में आश्वस्त किया कि बिलासपुर केन्द्रीय विश्वविद्यालय अपने कैम्पस में महिलाओं को श्रेष्ठतम सुविधाएँ उपलब्ध कराने वाला संस्थान साबित होगा।

विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद सौराष्ट्र विश्वविद्यालय राजकोट की पूर्व कुलपति निलांबरी दवे ने भी महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, शैक्षाणिक और पारिवारिक दशा के संदर्भ में अपनी बातें रखी। की-नोट स्वीकर के रूप में नीपा, दिल्ली से पहुँचीं प्रो. आरती श्रीवास्तव ने विभिन्न शोध और रिपोर्ट्स का जिक्र करते हुए महिलाओं के संदर्भ में लैंगिक समानता पर अपने विचार व्यक्त किए। विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित सुविख्यात उद्यमी मीनाक्षी टूटेजा ने स्वयं का उदाहरण देते हुए बताया कि पारिवारिक पाबंदियों से घिरी महिलाएँ भी अपने कौशल और निपुणता के बल पर समाज में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त कर सकती हैं। उन्होंने स्किल डेवलपमेंट और शिक्षा को महिलाओं की आत्मनिर्भरता के लिए बड़ा हथियार बताया।

कार्यक्रम की मुख्य संयोजिका व केन्द्रीय विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र की विभागाध्यक्ष प्रो.अनुपमा सक्सेना ने अपने आकर्षक स्वागत-संबोधन से कार्यक्रम की बेहतरीन शुरुआत की।

कार्यक्रम में खैरागढ़ विश्वविद्यालय के कुलसचिव व अंग्रेजी साहित्य के विद्वान प्रो. डा. आई.डी. तिवारी, केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो.शैत्लेंद्र कुमार, छत्तीसगढ़ी कला-संस्कृति पर केन्द्रित सांस्कृतिक लोकमंच 'चिन्हारी' के निर्देशक प्रेम चंद्राकर,खैरागढ़ विश्वविद्यालय के थिएटर और लोक संगीत विभाग के हेड प्रो.योगेन्द्र चौबे, फार्मेसी विज्ञान की हेड डा. भारती अहिवार, प्रो. डी. एन. सिंह, डा. एम.एन. त्रिपाठी, डा. सान्तवना पाण्डे, शासकीय इंजीनियरिंग कालेज से प्रो. अनिता खन्ना, डा. सीमा राय, डा. श्वेता सिंह, डा. सीमा पाण्डे, डा. भावना शुक्ला, डा. सोनिया स्थापक, श्री एस. लोन्हारे, डा. मुकेश अग्रवाल, डा. मनीष श्रीवास्तव समेत अनेक गणमान्य, प्राध्यापक, डीन, विभागाध्यक्ष, शिक्षक, शिक्षिकाएँ, छात्र-छात्राएँ व कर्मचारी कार्यक्रम में उपस्थित थे।


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