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गुरु वह दीपक है जो आत्मा तक जाने का मार्ग रोशन करता है-  गुरुशरण महाराज, पीठाधीश्वर पंडोखर धाम

गुरु वह दीपक है जो आत्मा तक जाने का मार्ग रोशन करता है-  गुरुशरण महाराज, पीठाधीश्वर पंडोखर धाम

दतिया। सनातन धर्म में गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व है। भारत में सदियों से गुरु का महत्व रहा है। यहां की माटी एवं जनजीवन में गुरु को ईश्वरतुल्य माना गया है, क्योंकि गुरु न हो तो ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग कौन दिखायेगा। गुरु ही शिष्य का मार्गदर्शन करते हैं और वे ही जीवन को ऊर्जामय बनाते हैं। जीवन विकास के लिए भारतीय संस्कृति में गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका मानी गई है।

 गुरु की सन्निधि, प्रवचन, आशीर्वाद और अनुग्रह जिसे भी भाग्य से मिल जाए उसका तो जीवन कृतार्थता से भर उठता है। क्योंकि गुरु बिना न आत्म-दर्शन होता और न परमात्म-दर्शन। इन्हीं की प्रेरणा से आत्मा चैतन्यमय बनती है। गुरु भवसागर पार करने में नाविक का दायित्व निभाते हैं। वे हितचिंतक, मार्गदर्शक, विकास प्रेरक एवं विघ्नविनाशक होते हैं। उनका जीवन शिष्य के लिये आदर्श बनता है। उनकी सीख जीवन का उद्देश्य बनती है। 

अनुभवी आचार्यों ने भी गुरु की महत्ता का प्रतिपादन करते हुए लिखा है- गुरु यानी वह अर्हता जो अंधकार में दीप, समुद्र में द्वीप, मरुस्थल में वृक्ष और हिमखण्डों के बीच अग्नि की उपमा को सार्थकता प्रदान कर सके।आषाढ़ की समाप्ति और श्रावण के आरंभ की संधि को आषाढ़ी पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा अथवा गुरु पूर्णिमा कहते हैं। गुरु पूर्णिमा आत्म-बोध की प्रेरणा का शुभ त्योहार है। यह त्योहार गुरु-शिष्य के आत्मीय संबंधों को सचेतन व्याख्या देता है। 

प्राचीन काल में विद्यार्थियों से शुल्क नहीं वसूला जाता था अतः वे साल में एक दिन गुरु की पूजा करके अपने सामथ्र्य के अनुसार उन्हें दक्षिणा देते थे। महाभारत काल से पहले यह प्रथा प्रचलित थी लेकिन धीरे-धीरे गुरु-शिष्य संबंधों में बदलाव आ गया। कहा गया है कि अगर आप गुरु की ओर एक कदम बढ़ाते हैं तो गुरु आपकी ओर सौ कदम बढ़ाते हैं। कदम आपको ही उठाना होगा, क्यों यह कदम आपके जीवन को पूर्णता प्रदत्त करता है। सिर्फ धन कमाने या रोजी-रोटी चला लेने से मनुष्य जीवन में सुखी नहीं रह सकता। यह सुखी रहने का बाहरी भौतिक उपाय है।

अपनी आत्मा को जानना और भगवान को पाना ही सच्चा सुख है। यद्यपि गुरुओं के महागुरु भगवान स्वयं प्रत्येक व्यक्ति के हृदय-गुहा में विराजमान हैं तथापि बिना किसी बाहर के योग्य गुरु की मदद के हम अपनी आत्मा को नहीं जान सकते। यह आध्यात्मिक गुरु ही अन्तरात्मा के बंद द्वार खोलता है और हमें भगवान से साक्षात्कार कराता है। यदि गुरु रास्ता न बताये तो हम भगवान तक नहीं पहुंच सकते। अतः सच्चा गुरु मिलने पर उनके चरणों में सब कुछ न्यौछावर कर दीजिये। उनके उपदेशों को अक्षरशः मानिये और जीवन में उतारिये। यही गुरु-पूर्णिमा की सार्थकता है तथा इसी के साथ अपने गुरु का भी सम्मान करें।

दतिया से राजीव मिश्रा की रिपोर्ट


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