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बिलासपुर की माताजी जो भारत ही नहीं विश्व भर के विधार्थियों को देती हैं संस्कृत भाषा की शिक्षा, कई सम्मान और उपाधि भी मिले

बिलासपुर की माताजी जो भारत ही नहीं विश्व भर के विधार्थियों को देती हैं संस्कृत भाषा की शिक्षा, कई सम्मान और उपाधि भी मिले

संदीप करिहार// बिलासपुर: आज के इस आधुनिकता भरे दौर में जहां हिंदी के साथ ही पूरे भारतवर्ष में अंग्रेजी कदमताल कर रहा है और विश्व की भाषा संस्कृत दम तोड़ती हुई नजर आ रही है। लेकिन इस दम तोड़ती हुई संस्कृत भाषा को बचाने के लिए बिलासपुर (bilaspur) की माताजी का डंका पूरे विश्व भर में गूंज रहा है। आज बिलासपुर और छत्तीसगढ़ के अलावा पूरे भारतवर्ष के अलग-अलग राज्यों से अपितु संस्कृत भाषा (sanskrit) की शिक्षा, ज्ञान व्याकरण का अंतर और भाषा को नजदीक से बारीकियों को समझने के लिए शिष्य और छात्र विदेशों से भी आकर भाषा की शिक्षा और ज्ञान अर्जन कर रहे है। 82 वर्ष की माताजी की इच्छा और सोंच उन्हें संस्कृत को बचाने के लिए जवां बना रखा हुआ है। 

ऑनलाइन-ऑफलाइन क्लास नि:शुल्क:

बिलासपुर की माताजी: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर के गोडपारा स्थित पाणिनीय शोध संस्थानम की संचालिका रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ पुष्पा दीक्षित (professor Dr. Pushpa Dixit) की अनोखी कहानी से आज आपको रूबरू करा रहें है। उनके हौसले और हिम्मत को देखकर उनके शिष्य भी अपनी कठोर त्याग से शिक्षा हासिल कर रहे है। रोजाना 18 घंटे तक माताजी डॉ पुष्पा दीक्षित क्लास ऑफलाइन क्लास तो , तकरीबन इतने ही वक्त की ऑनलाइन पिढ़ाई कराती है। संस्कृत भाषा को लेकर पुष्पा दीक्षित का जज्बा इतना है कि अपने शिष्यों को भोजन, आवास के अलावा शिक्षा भी नि:शुल्क दे रही है और संस्कृत भाषा की क्रांति फैलाने प्रचार प्रसार भी कर रही है। 

प्रोफेसर डॉ पुष्पा दीक्षित

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20 से भी ज्यादा देशों के छात्रों ने किया है ज्ञान हासिल: 

बिलासपुर की माताजी:  माताजी का कहना है कि भले ही भारत आज आजाद है, लेकिन आज भी हम भारतीय अंग्रेजों की बनाई शिक्षा नीति के गुलाम है और जब तक संस्कृत पूरे राष्ट्र और विश्व की भाषा नहीं बन जाती, तब तक वह अपने आखिरी सांस तक की लड़ाई लड़ते रहेंगे। यही उनकी इच्छा है। अब तक 20 से भी ज्यादा देशों के विदेशी छात्रों ने इनसे संस्कृत भाषा की शिक्षा का ज्ञान हासिल किया है और न जाने इन 20 से अधिक देशों के कितने हजार छात्र और कितने ही देशभर के शिष्य संस्कृत भाषा का ज्ञान बिलासपुर की 82 वर्षीय माताजी डॉक्टर पुष्पा दीक्षित से हासिल कर चुके है। बिलासपुर की डॉक्टर पुष्पा दीक्षित माताजी अब किसी नाम की मोहताज नहीं है, बल्कि हर कोई उन्हें संस्कृत वाली माताजी और संस्कृत भाषा की ध्वजवाहक के रूप में पहचानते है। 

निशुल्क भोजन, निशुल्क आवास और निशुल्क शिक्षा दे रही :

बिलासपुर की माताजी:  इस संबंध में डॉक्टर पुष्पा दीक्षित ने बताया कि उनके शिष्य अमेरिका, चीन, कनाडा, स्विट्जरलैंड, आस्ट्रेलिया, चीन, नेपाल के अलावा 20 से ज्यादा देशों से आकर शिक्षा हासिल कर चुके है, और आज भी ऑनलाइन और ऑनलाइन शिक्षा अनुसरण कर रहें है। इन सभी छात्रों को निशुल्क भोजन, निशुल्क आवास और निशुल्क शिक्षा दे रही है। वे 22 वर्ष की उम्र से ही संस्कृत पढ़ते आ रही हैं, उन्हें लगभग 6 दशक से ज्यादा का समय हो चुका है। वे संस्कृत भाषा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए समर्पित है और अपने जीवन को संस्कृत भाषा को विश्व भाषा बनाने के लिए समर्पित और संकल्पित है। 

संस्कृत एक मातृ भाषा और एक मातृ विश्व भाषा है: माताजी 

बिलासपुर की माताजी: माताजी पुष्पा दीक्षित का मानना है कि पैसा लेकर पढ़ाना अंग्रेजों के जमाने से शुरुआत हुई है, उससे पहले शिक्षा नि:शुल्क हुआ करती थी। भारतवर्ष में इस देश में ऋषियों ने इतनी पद्धति बनाई थी। वह सबसे श्रेष्ठ थी, प्रत्येक घरों से भिक्षा दी जाती थी, और उसी भिक्षा से समाज की शिक्षा से होती थी। लेकिन शासकीय करण होने से सब नष्ट हो गया है और गुरुकुल में तो पैसे से शिक्षा नहीं मिलती है। संस्कृत एक मातृ भाषा और एक मातृ विश्व भाषा है। संस्कृत हमारे भारतीय होने की पहचान है। अगर संस्कृत नहीं है, तो हम भारतीय नहीं हैं,  संस्कृत है तो भारत है। संस्कृत ही हमें पूरे विश्व में अलग पहचान दिलाती है। यदि संस्कृत नहीं होगी तो हम दूसरे देशों से कैसे विशिष्ठ होंगे। आज के इस दौर में नई पीढ़ी को तो यह भी नहीं पता कि हमें क्या पढ़ाया जा रहा है। हमारे देश की जड़ ही संस्कृत है। जिसे अंग्रेजों ने उखाड़ फेंका है। पूरे भारतवर्ष में 7 लाख 32000 गुरुकुल हुआ करते थे। जिसे अंग्रेजों ने जला दिया और तोड़फोड़ कर नष्ट कर बर्बाद कर दिया। 

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52 से अधिक किताबें लिख कर प्रकाशित करा चुकी हैं :

बिलासपुर की माताजी: गौरतलब है कि संस्कृत की देवी माताजी डॉ पुष्पा दीक्षित ने अपने जिंदगी के आखरी सांस तक संस्कृत भाषा को विश्व पटल पर मातृ भाषा का दर्जा दिलाना चाहती है। इसके अपने जीते जी तो वे प्रयास कर रही है। लेकिन खुद के ना रहने के बाद के लिए भी वे प्रयास जारी रखने वाली है। अब तक उन्होंने ने संस्कृत भाषा की 52 से अधिक किताबें लिख कर प्रकाशित करा चुकी है, जिसमें संस्कृत की तमाम बारीकियां और ग्रामर व्याकरण है। इसके अलावा संस्कृत ग्रंथ की 700 घंटे से भी अधिक का विडियो रिकॉर्डिंग करा चुकी है। इसी तरह अपने यूट्यूब पर रोज नई नई विडियो पोस्ट करती है। 

कई सम्मान और उपाधि मिल चुकी है:

बिलासपुर की माताजी: जिसमें हजारों शिष्यों और छात्रों को शिक्षा और डाउट का बारीक ज्ञान हो रहा है। उन्हें 2004 में राष्ट्रपति से भी पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम (Dr APJ Abdul Kalam) ने उनकी इस विधा को देखते हुए सम्मानित किया था। इसी तरह दिल्ली के श्रीलाल बहादुर शास्त्री विद्यापीठ द्वारा राष्ट्रीय संस्कृत हेतु 2010 में "वाचस्पति" सम्मान से नवाजा था। वहीं उत्तराखंड विश्वविद्यालय ने भी वर्ष 2007 में महामहोउपाध्याय की उपाधि दी है। इस तरह संस्कृत में उन्हें कई सम्मान और उपाधि मिल चुकी है। इसलिए डॉक्टर पुष्पा दीक्षित का प्रयास आज भी निरंतर जारी है।

कई सम्मान और उपाधि भी मिले 

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