रायपुर। छत्तीसगढ़ में आज 18 दिसंबर को संत गुरु घासीदास की 268वीं जयंती मनाई जा रही है। इस अवसर पर प्रदेश के अलग-अलग जिलों में जयंती के आयोजन की तैयारी चल रही है। दरअसल सतनामी समाज का गुरु घासीदास को जनक कहा जाता है। घासीदास का जन्म बलौदाबाजार जिला स्थित कसडोल ब्लॉक के एक गांव गिरौदपुरी में 18 दिसंबर 1756 को हुआ था। उनकी मां का नाम अमरौतिन बाई और पिता का नाम महंगूदास है। बतादें कि बाबा ने एक अलौकिक शक्तियों के साथ जन्म लिया था। उन्होंने अपने जीवन काल में सतनाम का प्रचार किया है।
हजारों की संख्या में पहुंच रहे गिरौधपुरी :
वहीं इनके बाद उनके पुत्र गुरु बालकदास ने इस परंपरा और शिक्षाओं को आगे बढ़ाया था। वहीं उनके जन्म दिन के अवसर पर आज प्रदेश से हजारों की संख्या में लोग गिरौधपुरी धाम गुरु घासीदास की जन्मस्थली पहुंच रहे हैं। बाबा गुरु घासीदास ने कम उम्र में जाति व्यवस्था की बुराइयों का अनुभव किया। दरअसल समाज में छुआछूत और भेदभाव की भावना घासीदास के जन्म के समय चरम पर था।
मानवीय गुणों के विकास का दिखाया रास्ता :
ऐसे में समाज में व्याप्त बुराइयों को देख घासीदास के मन में बहुत पीड़ा हुई। जिसके उन्होंने छुआछूत मिटाने को लेकर समाज को 'मनखे मनखे एक समान' का संदेश दिया। बतादें कि उन्होंने 'सत्य और अहिंसा' के रास्ते पर चलने का समाज को उपदेश दिया है। इसके साथ ही उन्होंने समाज में मदिरा सेवन और मांस को पूरी तरह से बंद करवा दिया था। वहीं उनके द्वारा दिए इस उपदेश को आत्मसात कर जीवन में उतारा और सतनामी समाज के रूप में इसके जाना जाने लगा। जिस वजह से ही 18 दिसंबर को संत गुरु घासीदास की जयंती के रूप में मनाया जाता है।