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MP Politics : जिलाध्यक्ष सूची में किसी चली, कौन नेता डाल-डाल तो कौन पात-पात?

MP Politics : जिलाध्यक्ष सूची में किसी चली, कौन नेता डाल-डाल तो कौन पात-पात?

MP Bjp Jila Adhyaksh Politics : (विकास जैन भोपाल) मध्यप्रदेश बीजेपी ने बीते दिनों प्रदेश के सभी जिले के जिलाध्यक्षों की सूची जारी की थी। करीब एक महीने चली खिंचतान के बाद बीजेपी बारी बारी से कदम फूंकते हुए सूची जारी करती गई। वजह रही पार्टी दिग्गजों के बीच रस्साकशी। जिसमें हर नेता अपने चेले को जिलाध्यक्ष की कुर्सी दिलाकर अपनी दमदारी दिखाना चाहता था। इसमें कई नेता अपनी दमदारी दिखाने में कामयाब भी हुए तो कई दिग्गजों की एक न चली। 

जमकर दिखी राजनीति!

वैसे तो बीजेपी संगठन में अगर कोई काम हो तो उसमें किसी की नहीं चलती है। बीजेपी अपने तौर पर फैसला लेती आई है, लेकिन जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में पार्टी के अपने ही नेता घुसपैठ करते नजर आए, तो कई नेताओं का दबदवा कायम होता दिखा। महाराज सिंधिया से लेकर वीडी शर्मा, हितानंद शर्मा, सीएम मोहन यादव समेत कई नेताओं ने अपने अपने स्तर से जोर लगाया। हालांकि इसमें भी जमकर राजनीति देखने को मिली। और नतीजा ये रहा की पार्टी एक बार में सूची जारी नहीं कर पाई। पार्टी को 9 बार में सूची जारी करनी पड़ी। नौबत तो वहां आई की बीजेपी को धाकड़ नेताओं वाले जिलों में एक नहीं बल्कि दो-दो जिलाध्यक्षों को नियुक्त करना पड़ा। 

कौन डाल-डाल, कौन पात-पात?

खैर लिस्ट जो जारी हो गई, लेकिन अब बात करते है मुद्दे की, कि कौन नेता अपना दम दिखाने में कामयाब रहा तो कौन नहीं! जिलाध्यक्ष कुर्सी की खिंचतान में सीएम मोहन यादव, ज्योतिरादित्य सिंधिया, प्रहलाद पटेल, नरेन्द्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय जैसे दिग्गज अपने अपने चहेतों के नाम आगे बढ़ा रहे थे। तो वही संगठन से वीडी शर्मा और हितानंद शर्मा अपना जोर लगा रहे थे। इतना ही नही जिलाध्यक्षों की जंग में कुछ मंत्रियों ने भी अपने चेलों के लिए भरपूर प्रयास किए। इस पूरी खिंचतान में एक चीज नजर आई वो थी की पार्टी के दिग्गज नेता डाल-डाल थे, तो वही संगठन पात-पात दिखाई दिया। 

क्या कहते है जानकार?

राजनीतिक जानकारों का विश्लेषण कहता है कि संगठन ने सारे नेताओं को साधने की कोशिश की है। इसके अलावा संघ की पसंद का भी ध्यान रखा गया। सीएम मोहन की पसंद से उज्जैन संभाग के जिलाध्यक्ष तय किए गए। विदिशा में शिवराज सिंह की चली, तो वही वीडी शर्मा की अपने संसदीय क्षेत्र खजुराहो, पन्ना और छतरपुर में चली। महाराज सिंधिया अपने कट्टर समर्थक जसवंत को पार्टी की सक्रिय कार्यकर्ता के क्राइटेरिया को ताक पर रखकर शिवपुरी की कमान दिलाने में कामयाब रहे। इसके अलावा सिंधिया के गढ़ अशोकनगर में हितानंद शर्मा की चली, हालांकि महाराज ने भी इसका समर्थन किया। तो वही ग्वालियर में वीडी शर्मा अपनी पसंद मनवाने में कामयाब रहे। इन सब में सबसे ज्यादा ताकत वीडी शर्मा और मोहन यादव की दिखाई दी। प्रदेश के करीब 10 जिलों में सीएम मोहन की पसंद देखी गई। वीडी शर्मा के करीब 20 नेता जिलों के मुखिया बने। 

जरूरत के हिसाब से मंत्रियों की भी सुनी

पार्टी के दिग्गजों के अलवा जरूरत के हिसाब से मंत्रियों की भी सुनी गई। जबलपुर और दमोह में मंत्री पटेल की पसंद को चुना गया। जबलपुर शहर में मंत्री राकेश सिंह की चली। विंध्य में डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल, दतिया में नरोत्तम मिश्रा, सागर शहर में मंत्री गोविंद सिंह तो ग्रामीण में दिग्गज विधायक गोपाल भार्गव का सिक्का चला। आखिरी आखिरी तक इंदौर के लिए मंत्री कैलाश विजयवर्गीय अड़े रहे, एक तरफ मंत्री तुलसी सिलावट थे तो दूसरी तरफ मंत्री विजयवर्गीय थे, लेकिन आखिरी सूची में मंत्री विजयवर्गीय अपना दम दिखाने में कामयाब रहे। कुल मिलाकर बीजेपी ने सबका साथ सबका विकास नरे की तर्ज पर सबका ध्यान रखा और कलह, असंतोष से छुटकारा पाया। 


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