CM Mohan Yadav : पॉलिटिक्स में एक कहावत है, कि राजनीति में कोई किसी का नहीं होता। पद, समय और परिस्थितियां कब बदल जाएं कोई नहीं जानता। मध्यप्रदेश में एक साल पहले यानि साल 2023 में दिसंबर का महीना था। उस समय तक प्रदेश की राजनीति का मतलब शिवराज सिंह चौहान हुआ करता था। प्रदेश की राजनीति शिवराज सिंह के आसपास ही सिमटी हुई थी। उनके जैसा कोई दूसरा नेता नहीं था, लेकिन बात और कहवात वही आ गई की राजनीति में समय किसी का नहीं होता। कुछ ऐसा ही एक साल पहले दिसंबर के महीने में हुआ जिसे कभी किसी ने सोचा नहीं था।
साल 2023 में हुए विधानसभा चुनावों में शिवराज सिंह की योजना लाडली बहना योजना मास्टर स्ट्रोक साबित हुई। प्रदेश में भाजपा ने प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई। सरकार बनने के बाद प्रदेश भाजपा कार्यालय के मैदान में विधायक दल की बैठक बुलाई गई। शिवराज सिंह चौहान पहली पंक्ति में बैठे थे। वही मोहन यादव पांचवी पंक्ति में जमे बैठे थे, की एकाएक एक आवाज आई और मोहन यादव पांचवी पंक्ति में से पहली पंक्ति में पहुंच गए, क्योंकि मोहन यादव को मुख्यमंत्री चुन लिया गया। सीएम कुर्सी की दौड़ में शिवराज सिंह के अलावा प्रदेश के दिग्गज चेहरे कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल जैसे नाम शामिल थे, लेकिन समय, काल और परिस्थिति पर किसी का बस नही चला।
मोहन ने लिखी सफलता की नई कहानी
प्रदेश का मुखिया चुने जाने के बाद सीएम मोहन यादव के सामने कई चुनौतियां थी, जिनमें से सबसे बड़ी चुनौती सीएम के तौर पर अपनी सफलता की नई कहानी लिखना। दूसरी चुनौती चाणक्य दिग्गजों का सामना करना था। मोहन यादव बखूवी सीएम पद संभालते हुए चुनौतियों को पार करते गए और प्रदेश से लेकर दिल्ली तक अपनी जगह बनाने में सफल साबित हुए। हालांकि वे राजनीति की चालों में विरोधियों के निशाने पर रहे, लेकिन वे इसमें भी सफल रहे। वे कई दिग्गजों को किनारे करते हुए और अफसरशाही पर हावी होते हुए उनकी ताकत प्रदेश से लेकर दिल्ली तक नजर आई।
सबसे बड़ी चुनौती ताकतवर नेताओं का सामना करना
मुख्यमंत्री मोहन यादव के सबसे सबसे बड़ी चुनौती दिग्गज और ताकतवर नेताओं के बेड़े में घुसकर उनका सामना करना था। वे अपनी कूटनीति और रणनीति से इसमें भी सफल रहे। मोहन के मंत्रिमंडल में कैलाश, प्रहलाद और राकेश सिंह जैसे दिग्गजों को शामिल करा दिया गया। इन नेताओं को राष्ट्रीय स्तर से लाकर प्रदेश स्तर की जिम्मेदारी दे दी गई। हालंकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ। तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर को सीएम पद से हटाकर शिवराज के मुख्यमंत्री रहते उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था, लेकिन दिग्गजों ने सीएम मोहन के साथ कदम से कदम मिलाया। हालांकि बीते दिनों हुए कैबिनेट की बैठक में दो कद्दावर मंत्री, मुखिया मोहन के फैसले का विरोध करते नजर आए।
बने मोहन, सिमटे शिव
प्रदेश के मुखिया की कुर्सी मोहन को देने के 6 महीने बाद बीजेपी ने शिवराज सिंह को सांसद बनाकर दिल्ली बुला लिया। शिवराज सिंह को दिल्ली बुलाना सीएम मोहन के लिए सुखद रहा, क्योंकि प्रदेश में शिवराज सिंह की लोकप्रियता अच्छी खासी थी। वे बच्चों के मामा, महिलाओं के भैया और युवाओं और नेताओं के चहेते थे। उनकी इस लोकप्रियता के चलते सीएम मोहन अपने आप को स्थापित करने में कसमकस कर रहे थे। शिवराज भले ही दिल्ली चले गए, लेकिन वे लगातार प्रदेश में सक्रिय रहे। हालांकि वे अपने लोकसभा क्षेत्र तक ही सिमट गए।
संगठन में लिखी सफलता की इवारत
जब मोहन यादव ने प्रदेश के मुखिया की कुर्सी संभाली थी, उनके सामने एक और बड़ी चुनौती थी, संगठन में अपनी जगह बनाना, क्योंकि संगठन में उनके समर्थकों की कमी थी। संगठन के अधिकांश नेता शिवराज के प्रेमी थे। वीडी शर्मा को भी शिवराज का करीबी माना जाता था, लेकिन मोहन यादव की कुशल राजनीति ने संगठन में अपनी एक अलग पहचान बनाई, शिवराज के करीबी वीडी शर्मा भी मोहन के करीबी हो गए। अब के हालातों पर नजर डालते तो संगठन के नेता और पदाधिकारी मोहन यादव का प्रचार प्रचार करते दिखाई देते है।
अफसरशाही पर हावी मोहन
मुख्यमंत्री मोहन यादव को शुरूआती दौर में शांत और हंसमुख सीएम के तौर पर देखा जाता था, लेकिन जब उनके तेवर सामने आए तो अफसरशााही भी दंग रह गया। जब शाजापुर के कलेक्टर ने एक ड्रायवर को अपमानित किया तो सीएम मोहन ने उनका तबादला ही कर दिया। तबादलों के ऐसे कई मामले सामने आते रहे। इतना ही नहीं सीएम मोहन ने लंबे समय से एक जगह पर जमे अफसरों को यहां से वहां कर दिया। वही सचिवालय में अफसरों की पदस्थापना की। हालांकि मुख्य सचिव को लेकर दिल्ली से फैसला हुआ। इसमें सीएम मोहन की नहीं चली, लेकिन वे डीजीपी की नियुक्ति में अपनी ताकत दिखाने में कामयाब रहे। उन्होंने अपने पसंदीदा अफसर कैलाश मकवाना को डीजीपी बनाकर पदस्थ करा दिया।
मोहन से कई उम्मीदे अभी भी बाकी
मुख्यमंत्री मोहन यादव का सीएम रहते एक साल बेमिशाल रहा, लेकिन अब अपने वाले सालों में सीएम मोहन से कई उम्मीदे बाकी है। जिनमें से पहली लाडली बहना योजना है। दरसअल, लाडली बहना योजना के अंतर्गत अभी 1250 रूपये की राशि दी जाती है। योजना की राशि को 3 हजार तक ले जाना भाजपा का वादा रहा है। ऐसे में अब यह राशि कब बढेगी, इसकी उम्मीद प्रदेश की करोड़ो महिलाएं सीएम मोहन यादव से लगाकर बैंठी हैं। वही प्रदेश में जारी रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव से आने वाले निवेश से बेरोजगारों को उम्मीद है। और सबसे बड़ी उम्मीद राज्य सरकार पर बढ़ते कर्ज से कैसे सीएम मोहन कैसे छुटकारा दिलाएंगे।
मुखिया मोहन का अब दूसरा साल शुरू होने वाला। उनका पहला साल तो उनकी योग्यता और मजबूती के बल पर गुजर गया। अब दूसरा साल और आने वाले सालों में सीएम मोहन क्या कमाल दिखाएंगे यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन हम यह जरूर कह सकते है की मुख्यमंत्री मोहन यादव का एक साल बेमिशाल रहा।
🖋️विकास जैन भोपाल