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MP BJP Jila Adhyaksh : जिलाध्यक्ष की तैनाती में क्या सिंधिया समर्थक पड़ रहे भारी?

MP BJP Jila Adhyaksh : जिलाध्यक्ष की तैनाती में क्या सिंधिया समर्थक पड़ रहे भारी?

MP BJP Jila Adhyaksh : मध्यप्रदेश बीजेपी की राजनीति में सबसे ताकतवर कौन है? प्रदेश भाजपा में किसकी धाक है और कौन कमजोर है? यह अब जिलाध्यक्षों की नियुक्तियों से दिखाई देने लगा है। प्रदेश के वो दो दिग्गज नेता जो कभी सीएम पद के उम्मीदवार थे, लेकिन दोनों को कैबिनेट मंत्री पद से संतोष करना पड़ा। दोनों भले ही मोहन कैबिनेट में सीनियर मंत्री कहलाते है, लेकिन दोनों को आज अपनी पसंद का जिलाध्यक्ष बनाने में कांटों भरे रास्ते से गुजरना पड़ रहा है। खास बात तो यह है कि जिस जगह दोनों नेता चूक रहे है तो वही महाराज सिंधिया बाजी मारते जा रहे है। 

सूची पर लगा ब्रेक

दरसअल, एमपी बीजेपी 62 जिलाध्यक्षों में से अबतक 57 जिलों में अध्यक्षों की तैनाती कर पाई है। बाकी 5 जिलों में अभी भी पेंच फंसा हुआ है। 18 जनवरी तक बीजेपी 57 जिलाध्यक्षों के नाम घोषित कर चुकी, लेकिन 18 के बाद जिलाध्यक्षों की घो​षणाओं पर ब्रेक लग गया। वजह है दिग्गजों के बीच खींचातानी। सबसे ज्यादा और दिलचस्प मुकाबला प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर और नसिंहपुर का माना जा रहा है। दोनों जिलों में प्रभारी मंत्री, सांसद, विधायक के बीच रस्साकशी है। 

इंदौर में क्या अटका जिलाध्यक्ष?

सबसे पहले बात करते है इंदौर की, इंदौर में मोहन सरकार के कद्दावर मंत्री कैलाश विजयवर्गीय अपने पसंदीदा नेता के नाम पर मुहर नहीं लगवा पा रहे है। वियजवर्गीय चाहते है की उनकी पसंद का जिला और ग्रामीण में अध्यक्ष हो, लेकिन सिंधिया समर्थक विजयवर्गीय पर भारी पड़ रहे है। सिंधिया के कट्टर समर्थक तुलसी सिलावट अपनी पसंद पर अड़े हुए है। विजयवर्गीय इंदौर बीजेपी के कद्दावर नेता है, राजनीतिक अनुभव में वे सीएम मोहन से बड़े माने जाते है। वही तुलसी सिलावट सरकार में मंत्री है। इंदौर जिले से आते है। सिलावट के पीछे ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे बड़े नेता का बैकअप है। कैलाश विजयवर्गीय चाहते है कि चिंटू वर्मा जिलाध्यक्ष बने। वही सिलावट की पसंद अंतर दयाल है। दयाल कलोत वर्ग से आते है। सबसे बड़ी बात तो यह बताई जा रही है कि पूर्व मंत्री उषा ठाकुर ने अंतर दयाल के नाम पर सहमति जताई है। इसी के चलते इंदौर में जिलाध्यक्ष का मामला अटका पड़ा हुआ है। 

नरसिंहपुर में क्यों फंसा पेंच?

नरसिंहपुर में भी कद्दावर नेता प्रहलाद पटेल अपनी पसंद को मंजूरी नहीं दिला पा रहे है। पटेल अपने भाई जालम पटेल को जिले का मुखिया बनाना चाहते थे, लेकिन बाद में नया नाम बीना ओसवाल का समाने आया। पटेल अब ओसवाल के नाम की पैरवी कर रहे है, लेकिन मोहन सरकार के स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह ने पेंच फंसा के रखा है। वे राजीव पटेल को जिले की कमान दिलाना चाहते है। इसी के चलते नरसिंहपुर में दो मंत्रियों के बीच मामला फंसा हुआ है। 

महाराज का दबदबा कायम 

विजयवर्गीय और पटेल दोनों आलाकामन के अलावा प्रदेश के कद्दावर नेता है। दोनों एक समय सीएम की दौड़ में भी शामिल रहे, लेकिन अपनी पसंद मनवाने में दोनों को मशक्कत करनी पड़ रही है। तो वही ज्योतिरादित्य सिंधिया ऐसे नेता उभरकर सामने आए जो अपना दबदबा कायम रखने में कामयाब रहे। वे पार्टी के 6 साल की सदस्यता वाले क्राइटेरिया को दांव पर रखकर शिवपुरी में अपने समर्थक जसवंत जाटव को जिलाध्यक्ष की कुर्सी दिलाने में कामयाब रहे। 

इंदौर और नरसिंहपुर के अलावा तीन जिलों में भी मामला अटका हुआ है। छिंदवाड़ा में तो तस्वीर ही अलग ​नजर आ रही है। छिंदवाड़ा कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। इसके बाद भी बीजेपी यहां जिलाध्यक्ष तय नहीं कर पा रही है। बरहाल इतना तो तय है कि जब भी पांचों जिलों में जिलाध्यक्षों की घोषणा होगी तो नेताओं को अपने अपने जिलों में अपनी ताकत का अहसास तो जरूर होगा।


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