राजा शर्मा // डोंगरगढ़:- राजनादगांव जिले के धर्मनगरी डोंगरगढ़ से जमीन रजिस्ट्रेशन में फर्जीवाड़ा का मामला प्रकाश में आया है। आदिवासी की जमीन को हल्बा बनकर खरीदा जाता है। खरीदी करने वाले व्यक्ति के मृत्यु के बाद मां के नाम पर जमीन का बिना केस नामांतरण भी कर दिया जाता है। उसके बाद ब्राह्मण बनकर अग्रवाल को बेच दिया जाता है। मजे कि बात तो यह हैं , कि जमीन विक्रेता आदिवासी को जानकारी होने पर धोखाधड़ी की जांच का शिकायत कर जमीन वापसी का मांग करता है । लेकिन प्रशासनिक पदों में बैठे अधिकारी शिकायत की जानकारी होते हुए भी अग्रवाल के नाम से नामांतरण का आदेश कर देते हैं। जवाबदार पद में होते हुए भी इनको किसी का भय नहीं है।
2003 में खरीदे थे कृषि भूमि :
पूरा मामला डोंगरगढ़ का है ईश्वर गोंड बढ़ियाटोला निवासी से स्वामी विवेकानंद आश्रम के संत उभय उमरेडकर जाति हल्बा ने ग्राम राजकट्टा स्थित खसरा नम्बर 233/1 रकबा 1.47 डिसमिल कृषि भूमि को वर्ष 2003 में खरीदते हैं। संत के मृत्यु के उपरान्त ये जमीन स्वामी विवेकानंद आश्रम जाने को छोड़ सन्त के माता जी के नाम पर बिना केस नामांतरण कर दिया जाता है। जबकि ये कृषि भूमि आश्रम को जाना था , लेकिन ये ना होते हुए संत के माता जी के नाम पर नामांतरण हो जाता है । सन्त की माता जी ब्राह्मण परिवार की थी । अगर सन्त के परिवार में कृषि भूमि को जाना ही था तो नियम से माता जी के साथ सन्त के सभी भाई बहनों का भी नाम दर्ज होना था।
पिता के जाति पर होता हैं संतानों का जाति :
जब पिता हल्बा है तो सभी संतानों का जाति भी हल्बा होना चाहिए था । इसमें तो ये स्पष्ट दिखाई पड़ता हैं कि अगर क्रेता आदिवासी था तो वह आदिवासी को ही विक्रय कर सकता है। और यदि क्रेता ओबीसी था तो आदिवासी की जमीन कैसे ले सकता है साथ ही एक ही परिवार में तीन भाई अलग-अलग जाति के कैसे हो सकते हैं इस पर भी विचार करना चाहिए।
लेकिन ऐसा नहीं हुआ सन्त के भाई के नाम से डोंगरगढ़ शहर में पक्का मकान है जिसमें जाति कोष्टी (ओबीसी) बनकर सोनी को बेच दिया जाता है । सूत्रों की माने तो संत का भाई मत्स्य विभाग में भी कार्यरत थे। अब वह रिटायर्ड हो चुके हैं। ये सोचा समझा षड्यंत्र हैं क्योंकि ये कृषि भूमि जैन धर्म के तीर्थ चंद्रगिरी ग्राम राजकट्टा की कीमती जमीन हैं।
आदिवासी से खरीदी जमीन बिना कलेक्टर परमिशन से हो जाता है सामान्य:
सन्त द्वारा खरीदी गई आदिवासी की कृषि भूमि सन्त के मृत्यु के बाद माता जी के नाम पर रिकॉर्ड में दर्ज हो जाता हैं। चुकीं माता जी ब्राह्मण परिवार से थी तो माता जी अपनी बहू के नाम पर मुख्तयार नामा लिख देती है। बहु कृषि भूमि से संबंधित सारी जानकारी होते हुए भी जमीन दलालों के साथ साठ गांठ कर अग्रवाल को 2024 में बिक्री कर देती हैं। जबकि आदिवासी के जमीन को बिना कलेक्टर अनुमति बेचा नहीं जा सकता हैं।
जवाबदार अधिकारी के बिगड़े बोल :
शिकायत के सम्बन्ध में जब हमने जानना चाहा तो एस डी एम मनोज मरकाम कहते है कि इस सम्बन्ध में शिकायत मिली है विधिवत जाँच कर कारवाही करेंगें। वहीं संबंधित तहसीलदार मुकेश ठाकुर से जानना चाहा तो कहते हैं कि ऑनलाइन के माध्यम से रजिस्ट्रेशन हुआ था तो नामांतरण करने का आदेश देना ही था। जबकि तहसीलदार ये भी स्वीकार करते हैं है शिकायत तो हुई हैं। लेकिन शिकायत पर विचार नहीं करते हुए नामांतरण का आदेश कर दिया बड़ी सफाई से कहते हैं कि ये सिविल का मामला हैं। अगर ऐसे ही सभी मामले सिविल की हो जाए तो इनके कार्यालय में कोई शिकायत ही क्यों करेगा । ये अधिकारी बिना डर भय से कहते है , कि शिकायतकर्ता आगे अपील कर सकते हैं।
इससे तो यह प्रतीत होता है कि इनको सत्ता पक्ष का सहयोग प्राप्त है। जबकि शिकायत होने पर जांच कर नामांतरण में रोक लगना चाहिए था, साथ ही जांच कर भूमि के क्रय विक्रय करने वालों एवम् जमीन विक्रय में मध्यस्ता करवाने वालों पर कानूनी कार्यवाही करने का आदेश देना चाहिए जबकि ऐसा नहीं है । इनके जवाब से ही प्रतीत होता हैं कि इनको किसी का भय नहीं है। आश्चर्य की बात तो यह है कि प्रदेश के मुखिया भी आदिवासी है और आदिवासियों के हित की बाते करते हैं। डोंगरगढ़ में जवाबदार पदों में पदस्थ एसडीम, तहसीलदार भी आदिवासी हैं इनको पूरे नियम क़ानून की जानकारी होते हुए भी एक आदिवासी के साथ इन्साफ ना करते हुए उसी के साथ छल कर रहे हैं । आगे देखना यह है कि एसडीम अपने ही विभाग के तहसीलदार सहित सभी दोषियों पर क्या कदम उठाते हैं।