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Chunavi Samvad : राजीव जी जिंदा रहते तो मैं मुख्यमंत्री बन गया होता : बीरेंद्र सिंह

Chunavi Samvad : राजीव जी जिंदा रहते तो मैं मुख्यमंत्री बन गया होता : बीरेंद्र सिंह

हरियाणा के वरिष्ठ कांग्रेस नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह से जनता टीवी व आईएनएच न्यूज चैनल के प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी का चुनावी संवाद

चौधरी बीरेंद्र सिंह बिना मैदान में उतरे हुए चुनावी मैदान को कैसे देख रहे हैं ? 
यह पहला ऐसा चुनाव है जिसमें क्षेत्रीय दल की स्थिति नाम मात्र की है। दूसरी खास बात यह है कि भाजपा इस चुनाव में इस उम्मीद से उतरी है कि शायद तीसरी बार सत्ता प्राप्त हो जाए। इस समय लोगों में कांग्रेस के लिए विशेष आकर्षण है। जनता जान चुकी है कि यदि हम कांग्रेस को समर्थन देंगे तो भाजपा को सत्ता से बाहर किया जा सकता है। इस चुनाव में मतदाता ने वैचारिक रूप से भाजपा को नापना और आंकना शुरू कर दिया है जिसका परिणाम आप बहुत जल्दी देखेंगे। 
यह चुनाव पार्टी का लग रहा है या व्यक्ति का, फैसला नायब सिंह सैनी के बीच होना है या भूपेंद्र सिंह हुड्डा में ?
मुख्यमंत्री होना या फिर मुख्यमंत्री ने क्या कार्य किए और क्या कार्य नहीं किए, यह सवाल मायने नहीं रखते। सबसे बड़ा सवाल यह है कि भारतीय जनता पार्टी ने 10 साल में किस तरीके से कार्य किए हैं। हरियाणा परंपरागत रूप से ऐसा राज्य रहा है जहां 36 बिरादरी एक साथ मिलजुल कर रही है। एक दूसरे के प्रति घृणा रखना हरियाणा की संस्कृति नहीं है। आज तक जातीय आधार पर किसी ने वोट लेने के लिए लोगों को बांटा नहीं था।


तो क्या भारतीय जनता पार्टी बांटने की राजनीति कर रही है ? 
मैं साबित कर सकता हूं कि भाजपा ने जाति और धर्म का सहारा लेकर लोगों को बांटा है। इन्होंने जिस किस्म की राजनीति की है उसी का परिणाम है कि आज हरियाणा में इनका विरोध हो रहा है। 
आप कह रहे हैं कि भाजपा ने बांटने की राजनीति की है लेकिन आपने भी उसी पार्टी में 9 साल बिताए।  बांटने की राजनीति में चौधरी बीरेंद्र सिंह का कितना योगदान रहा ?
मैंने 9 साल भाजपा में रहकर यह जानने की कोशिश की कि इनके जहन में देश, समाज और लोगों के प्रति क्या भावना है।


आप इसी पार्टी में 2014 में भाजपा का हिस्सा बने थे। आपको तो भाजपा इतनी पसंद थी कि आपने अपने बेटे से इस्तीफा दिलवाकर उसे पार्टी की सदस्यता दिलवाई। आज चौधरी साहब कह रहे हैं कि भाजपा का मामला ठीक नहीं है? 
मैं आज ऐसी बात नहीं कह रहा, शुरू से ही कर रहा हूं। किसानों के जो भी आंदोलन हुए मैं उनके साथ खड़ा था। और भी कई ऐसे मुद्दे थे जिन पर  मैं खुलकर बोला करता था। जाट आरक्षण और पहलवान बेटियों के मामले पर भी मैं खुलकर बोला।  भाजपा में रहते हुए मैंने कोशिश की थी कि यह पार्टी इस बात को समझे कि वह किस रास्ते पर जा रही है। यह रास्ता हमारी फिलोसॉफी नहीं है और किसी भी प्रजातंत्र में ऐसा नहीं होता जैसे भाजपा कर रही थी।
आप तो बहुत बड़ी शख्सियत थे जिनकी बातचीत नरेंद्र मोदी और अमित शाह से भी लगातार होती थी।
मेरी बातचीत उनसे इसलिए रहती थी क्योंकि मैं उस समय सरकार में मंत्री था। जिम्मेदारियों के नाते प्रधानमंत्री से मिलता था लेकिन मैं उनकी कार्यशैली से इत्तेफाक नहीं रखता था। एमएसपी और अग्निवीर के मुद्दे पर उनकी नीति मैंने देखी। आज भी यह लोग एजुकेशन सिस्टम में ऐसे लोगों को भर रहे हैं जो वैचारिक रूप से उनके साथी हैं। इस तरह की सोच भारत के 140 करोड़ लोग कभी बर्दाश्त नहीं कर सकते। 


चौधरी साहब, आपने कांग्रेस छोड़ी, 2024 में वापस कांग्रेस में आए। 10 साल में कितनी बदल गई कांग्रेस, आपने जो कांग्रेस छोड़ी थी क्या वह बेहतर हुई है? 
आज कांग्रेस बहुत बड़ी पार्टी है। एक समय था जब हमारा पक्का वोटर हमसे दूर चला गया था। आरक्षण और संविधान को लेकर भाजपा की कार्यशैली को देखकर वह वोटर वापस कांग्रेस में लौट आया है। उसके वापस आने से कांग्रेस मजबूत हुई है। यही कारण है कि भाजपा का 400 का नारा 240 पर अटक गया। 40 शब्द हरियाणा के लिए भी बहुत खतरनाक है। 2019 में यहां भी दोनों 40 पर आए थे। 


आपको 240 हमेशा याद रहता है 99 के फेर के बारे में भी तो कुछ कहिए। 
99 का फेर देश देख चुका है और मैं भी बता चुका हूं। देश ने बता दिया है कि विचारों की अभिव्यक्ति और प्रजातंत्र पर किसी प्रकार का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उत्तर प्रदेश में 80 सीटें जीतने का दावा करने वाले 34 पर पहुंच गए। देश के लोगों ने भाजपा की हकीकत को जान लिया इसीलिए परिणाम उल्टे हुए और कांग्रेस को मजबूती मिली।

इस समय खुद बीजेपी माहौल बना रही है और प्रधानमंत्री जी खुद मुहिम चलाए हुए हैं कि कांग्रेस आरक्षण खत्म करना चाहती है।
प्रधानमंत्री जी ने चुनाव में जिस तरह की भाषा का प्रयोग किया था वह प्रधानमंत्री के स्तर की नहीं थी। आरक्षण खत्म करने का खतरा उससे होता है जो सत्ता में होता है न की जो विपक्ष में है। विपक्ष ने प्रधानमंत्री को अपनी ताकत दिखा दी है। 
अब हरियाणा की बात करते हैं, 2014 के भूपेंद्र सिंह हुड्डा और 2024 के भूपेंद्र सिंह हुड्डा में क्या फर्क देखते हैं?
भूपेंद्र सिंह हुड्डा जब 10 साल मुख्यमंत्री रहे तो उन्होंने सकारात्मक तरीके से हरियाणा में कांग्रेस को मजबूत किया। 
इस बार हुड्डा कांग्रेस के प्रति लोगों का रुझान है या कांग्रेस आई के प्रति है। लोग बापू बेटे की सरकार के संदर्भ में भी बातें कर रहे हैं?
आज लोगों का रुझान भाजपा को सत्ता से बाहर करना है। पिछली बार भी लोगों का मन था लेकिन वह फैसला नहीं ले पाए थे। आज वोटर्स को लगता है कि हम भाजपा को सत्ता से बेदखल कर सकते हैं।
46 महीने पहले अस्तित्व में आई जजपा ने 10 सीटें जीती थीं। जजपा को लेकर क्या उम्मीदें हैं आपकी?
जजपा यदि किसी भी सीट पर अपनी जमानत भी बचा ले तो मैं उन्हें क्रेडिट दूंगा। अब उनकी कोई हैसियत नहीं बची। 
आप उनके प्रति इतना निर्मम क्यों हो रहे हैं, देवीलाल के वंशज हैं और साढ़े 4 साल सत्ता में रह चुके हैं। दुष्यंत चौटाला जी कहते हैं कि उन्होंने भाजपा को केवल इसलिए लात मार दी क्योंकि भाजपा ने बुढ़ापा पेंशन 5100 करने से मना कर दिया था। ऐसी लड़ाई लड़ने वाले युवा तुर्क हैं दुष्यंत और दिग्विजय चौटाला, और आप कह रहे हैं कि इस पार्टी की जमानत भी नहीं बचेगी। 


ऐसा मैं नहीं बोल रहा, उचाना के लोग बोल रहे हैं। मैं एक गांव में गया था जहां 6 हजार वोट हैं। जब मैंने लोगों से पूछा कि जजपा को कितने वोट मिलेंगे तो लोगों ने कहा कि इनके 50 से 100 वोट भी आ जाएं तो बहुत बड़ी बात है। इन्हें तो जनता रिजेक्ट कर रही है। लोग भूले नहीं हैं कि उनके पिताजी जो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, ने किसान आंदोलन के वक्त किन शब्दों का इस्तेमाल किया था। दुष्यंत चौटाला ने सत्ता की लड़ाई लड़ी और 10 एमएलए भी बनाए। यदि ये सभी एमएलए विपक्ष की भूमिका अदा करते तो आज जजपा महत्वपूर्ण पार्टी बन सकती थी। 
दुष्यंत  साढ़े 4 साल डिप्टी सीएम बने रहे और उचाना के विधायक भी रहे। उचाना ने विकास के नए कीर्तिमान स्थापित किए होंगे, ऐसे में आपके लिए उचाना में कितनी मुश्किल खड़ी हुई है? 
उन्होंने उचाना के लिए कुछ नहीं किया। हमारे इलाके के जो बड़े गांव हैं वहां लोग मेरा भी जिक्र नहीं करते, केवल प्रेमलता का करते हैं। लोग कहते हैं कि हमारे लिए केवल प्रेमलता ने काम किए हैं। एक गांव में दुष्यंत चौटाला भी गए थे। गांव के लोगों ने उन्हें गांव में रुकने नहीं दिया। 


आपके साथ रहीं किरण चौधरी राज्यसभा में है और बेटी को विधानसभा का चुनाव लड़वा रही हैं। जयप्रकाश सांसद हो गए, बेटा भी चुनाव लड़ रहा है, रणदीप भी सांसद बनकर राज्यसभा चले गए हैं। भूपेंद्र हुड्डा के बेटे लोकसभा में हैं। चौधरी बीरेंद्र सिंह जी को क्या हुआ जो उन्होंने हथियार तहखाने में रख दिए? 
मेरा सीधा निर्णय यह था कि मैं चुनावी राजनीति में आगे नहीं आऊंगा लेकिन राजनीतिज्ञ के रूप में पहले से भी ज्यादा सक्रिय रहूंगा। पार्टी के दायरे में बंद होकर कुछ लोग छोटी बातें करते हैं लेकिन मेरी सोच ऐसी नहीं है। आप जिन लोगों के नाम ले रहे हैं केवल वे राजनीति में नहीं आए बल्कि ऐसे लोग भी आ रहे हैं जिनके पिता प्रसिद्ध नहीं हैं। कांग्रेस ने सबको आगे बढ़ने का मौका दिया है। महिलाएं भी आगे आ रही हैं जो नए युग की शुरुआत है।
खट्टर जी की जगह नायब सिंह सैनी को 6 महीने पहले मुख्यमंत्री बना दिया गया। इससे भाजपा की लड़ाई मुश्किल हुई है या आसान हुई है?


यदि साल या 2 साल पहले इनको बदलकर बनाते तो रिजल्ट आ सकता था। कुछ महीने पहले मुख्यमंत्री और मंत्रियों को बदलने से कोई असर नहीं होता। मतदाता 6 महीने पहले ही मन बना लेता है कि वह किस पार्टी या विचारधारा को वोट देगा। नए मुख्यमंत्री ने अच्छी कोशिश की है लेकिन इसका प्रभाव नहीं पड़ेगा। 
केजरीवाल जी भी बाहर आ गए हैं। हरियाणा में आम आदमी पार्टी को लेकर आप क्या सोचते हैं? 
जेल से बाहर आकर कोई भी सोच लेता है कि वह इमोशनल कार्ड खेलकर लोगों को अपने पक्ष में कर लेगा लेकिन पॉलीटिकल पार्टी का रिवाइवल इतना आसान नहीं होता। 
हरियाणा का बेटा और दिल्ली का मुख्यमंत्री केजरीवाल भाजपा पर असर डालेगा या कांग्रेस पर?
इनका कोई असर नहीं होगा, उनके यहां वोट ही नहीं है। 
तो जिनके पास वोट नहीं है उसके साथ कांग्रेस ने सीट बंटवारे को लेकर एक हफ्ता क्यों लगा दिया?  
हमारी लीडरशिप का विचार था कि हरियाणा में भी इंडिया एलाइंस का कुछ ना कुछ हिस्सा होना चाहिए। इंडिया एलाइंस की ताकत का एहसास जनता और भाजपा दोनों कर चुकी हैं। इसी दृष्टिकोण से हमारा भी प्रयास था कि आम आदमी पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी, एनसीपी, समाजवादी पार्टी से बातचीत की जाए, हमारी कोशिश थी कि विपक्ष एकजुट नजर आए। 
कांग्रेसी बड़ी संख्या में निर्दलीय उतरे हुए हैं, क्या कहेंगे?  
उनके क्या परिणाम आने वाले हैं यह मीडिया कुछ समय बाद अपने आप बता देगा। जो भूमिका पहले क्षेत्रीय दल निभाते थे अब वह निर्दलीयों के हाथ में आ गई है। भाजपा और कांग्रेस दोनों में ही ऐसे कई नेता थे जिनकी ख्वाहिश टिकट लेना थी। 
निर्दलीयों की मौजूदगी कांग्रेस पर कितना प्रतिकूल प्रभाव डालेगी। कांग्रेस की स्थिति बहुमत की दिख रही है या बहुमत के पार की दिख रही है?
कांग्रेस को बहुत बड़ा बहुमत मिलेगा। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि हरियाणा के 70 प्रतिशत वोटर भाजपा से नाराज हैं इसलिए वह भाजपा को वोट नहीं देंगे। जहां तक निर्दलीयों की बात है तो वे केवल कांग्रेस ही नहीं बल्कि भाजपा के वोटों का भी नुकसान करेंगे। लेकिन जीतने की स्थिति में वही निर्दलीय होगा जो बीजेपी और कांग्रेस के उम्मीदवार से ताकतवर होगा। 
आपको साफ नजर आ रहा है कि कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिल रहा है तो मुख्यमंत्री कौन बनेगा?  
इसका फैसला है हाईकमान मन करेगा। कांग्रेस की प्रथा है कि वह मुख्यमंत्री का चेहरा आगे नहीं करते। 
कुमारी शैलजा जी और रणदीप सुरजेवाला जी भी मुख्यमंत्री के बोल बोल रहे हैं, सबकी इच्छा है तो मौका किसका लगने वाला है?  
मैं जानता हूं कि कांग्रेस में मुख्यमंत्री का चयन और निर्णय कैसे होता है। हमारे यहां  एमएलए से पूछा जाता है फिर ऑब्जर्वर एमएलए से पूछकर रिपोर्ट बनाते हैं। उसके बाद अंतिम निर्णय हाईकमान करता है। पहले बावरिया जी ने यह कहा था कि सांसद चुनाव नहीं लड़ेंगे। इसके बाद उन्होंने कहा कि यह जरूरी नहीं कि एमएलए को ही मुख्यमंत्री बनाया जाए, मुख्यमंत्री कोई भी बन सकता है।
यहां तो फिर चौधरी वीरेंद्र सिंह जी बिल्कुल फिट बैठते हैं।
मुख्यमंत्री बनने का क्राइटेरिया कई बार बना भी है और बहुत नजदीकी भी आई है। यदि राजीव जी जिंदा रहते तो 1991 में 44 साल का लड़का मुख्यमंत्री बन गया होता। अब 78 की उम्र में क्या मुख्यमंत्री बनेंगे।
बृजेंद्र सिंह ने 5 साल सांसद के तौर पर बिता लिए।  आपकी इच्छा के अनुसार पार्टी ने उन्हें उचाना से प्रत्याशी भी बनाया है। आपने अपने बेटे को नौकरी से इस्तीफा दिलवाकर उसका राजनीति में प्रवेश कराया, क्या उनका मिजाज राजनीति के अनुरूप लग रहा है या फिर पिता की इच्छा की खातिर एक प्रतिभाशाली बेटा जूझ रहा है। 
मेरे प्रतिभाशाली बेटे की खुद की इच्छा थी कि वह राजनीति में आए। उसके दोस्त उसके कहने पर मुझसे पूछा करते थे कि अंकल बृजेंद्र को कब राजनीति में लेकर आओगे। वह बहुत टैलेंटेड है और मैं चाहता हूं कि उसकी तरह और युवाओं को भी राजनीति में आना चाहिए।


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