छतीसगढ़ में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में अगहन बृहस्पति परब को महिलाएं विधि विधान से पूजा अर्चना कर मानती हैं। एक तरह से यह पर्व प्रकृति और पर्यावरण से संबंधित होते हैं।
एक दिन पहले से ही कर ली जाती पूजा की तैयारी:
देवउठनी एकादशी के बाद से ही शुभ कार्य प्रारंभ हो जाते हैं, जिसमें अगहन मास को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। वैसे इस व्रत का प्रभाव दिन प्रातः से लेकर रात्रि तक देखा जाता है। इसके साथ ही पूजा की तैयारी को एक दिन पहले से ही कर ली जाती है। इसके ठीक विपरीत धमतरी शहर के एक मोहल्ले में विगत सौ वर्षों से महिलाएं सामूहिक रूप से पूजा अर्चना कर यह व्रत पूर्ण करती हैं, जिसमें महिलाएं सुबह एक स्थान विशेष पर एकत्र होकर इस व्रत से संबंधित कथा का वाचन और श्रवण करती हैं।
हर गुरुवार को यह पूजा नियमित रूप से की जाती:
कथा सुनने और पूजा अर्चना के बाद सामूहिक आरती करती हैं। इतना ही नहीं हर गुरुवार को यह पूजा नियमित रूप से की जाती हैं। इस पूजा के माध्यम से अपने घरों के आसपास साफ सफाई कर गोबर लिपकर शुद्धि के साथ ही रंगोली सजाकर स्वच्छता के प्रति समाज को संदेश देने का कार्य भी कर रही हैं। इस परम्परा को अपने मोहल्ले तक सीमित न रख विस्तार करने की अब महिलाएं पहल करने लगी हैं।