डॉ. मनमोहन सिंह स्मृति शेष: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का गुरुवार रात निधन हो गया, वह 92 वर्ष के थे. एम्स दिल्ली ने सिंह के निधन की घोषणा की. उन्हें गंभीर हालत में बीती रात करीब 8:30 बजे आपातकालीन वार्ड में भर्ती कराया गया था. केंद्र सरकार ने 7 दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया है, साथ ही आज के सभी शासकीय कार्यक्रम कैंसिल कर दिए गए हैं, डॉक्टर मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा.
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और मशहूर अर्थशास्त्री डॉक्टर सिंह का नाम भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में ऐसे शख्स के तौर पर दर्ज है, जिसने अपने कम से देश को नई पहचान दिलाई. डॉक्टर सिंह को न केवल उनके विजन के लिए जाना जाता है जिसने भारत को एक आर्थिक महाशक्ति बनाया, बल्कि उनकी कड़ी मेहनत और उनके विनम्र मृदुभाषी व्यवहार के लिए भी जाना जाता है. वह एक ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्हें न केवल उनके छलांगों और सीमाओं के लिए याद किया जाएगा, जिससे उन्होंने भारत को आगे बढ़ाया बल्कि एक विचारशील और ईमानदार व्यक्ति के रूप में भी वे याद रहेंगे.
मनमोहन हमेशा अपने शांत स्वभाव और सादगी के लिए जाने गए। वो ना तो भाषणों में जोश दिखाते थे और ना ही किसी विवाद में पड़ते थे। उनका काम ही उनकी पहचान था। मनमोहन सिंह ने भारत को आर्थिक संकट से उबारा और देश को दुनिया में नई पहचान दिलाई। उन्होंने साबित किया कि बिना शोर मचाए भी बड़े बदलाव किए जा सकते हैं। उनके निधन के साथ भारत ने एक ऐसा नेता खो दिया है, जिसने सादगी, ईमानदारी और कर्मठता से देश की सेवा की।
पहले सिख प्रधानमंत्री:
मनमोहन सिंह 2004 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री थे। वह जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और नरेंद्र मोदी के बाद चौथे सबसे लंबे समय तक पीएम पद पर रहने वाले प्रधानमंत्री थे। मनमोहन सिंह भारत के पहले सिख प्रधानमंत्री भी थे।
पंजाब से बिटेन तक का सफर :
डॉ. सिंह ने 1948 में पंजाब युनिवर्सिटी से अपनी मैट्रिक की शिक्षा पूरी की थी। पंजाब से वह ब्रिटेन की कैमब्रिज युनिवर्सिटी तक पहंचे, जहां उन्होंने 1957 में अथ्थशास्त्र में फस्ट क्लास ऑनर्स की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने 1962 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के नफ़ील्ड कॉलेज से अर्थशास्त्र में डी.फिल की उपाधि हासिल की। मनमोहन सिंह ने पंजाब यूनिवर्सिटी और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़ाया भी है।
कई सरकारी पदों पर किया काम:
1971 में मनमोहन सिंह भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में शामिल हुए। इसके तुरंत बाद 1972 में वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में उनकी नियुक्ति हुई। वह जिन कई सरकारी प्दों पर रहे उनमें वित्त मंत्रालय में सचिव, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, भारतीय रिजर्व बैंक के गव्नर, प्रधानमंत्री के सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष भी शामिल है। मनमोहन सिंह 1991 से 1996 के बीच भारत के वित्तमंत्री भी रहे. आर्थिक सुधारों की एक व्यापक नीति शुरू करने में उनकी भूमिका को दुनिया भर में आज भी सराहा जाता है।
प्रधानमंत्री रहते कभी नहीं ली छुट्टी:
मनमोहन सिंह 2004 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। इन 10 सालों में उन्होंने कभी छुट्टी नहीं ली, सिवाय 2009 में जब उन्हें हार्ट की बाईपास सर्जरी करानी पड़ी। वो हर दिन 18 घंटे काम करते थे और करीब 300 फाइलें निपटाते थे। लेकिन उनके शांत स्वभाव की वजह से लोग उन्हें कमजोर नेता मानने लगे।
विवाद और चुनौतियां:
डॉ. सिंह के कार्यकाल में कई विवाद भी हुए। 2जी स्पेक्ट्र्म, कोलगेट और कॉमनवेल्थ गेम्स जैसे घोटाले उनकी छवि पर धब्बा बने। हालांकि, इन घोटालों की जांच में आज तक कोई ठोस सबूत नहीं मिला। 2008 में उनकी सरकार पर संकट आया जब वामपंथी दलों ने समर्थन वापस ले लिया। लेकिन मुलायम सिंह और मायावती के समर्थन से उनकी सरकार बच गई।
इतिहास मेरे साथ इंसाफ करेगा:
जब 2014 में उन्होंने साफ कर दिया कि वो तीसरी बार प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे, तब उन्होंने कहा था, 'इतिहास मेरे साथ समकालीन मीडिया और विपक्ष से ज्यादा इंसाफ करेगा।
प्रणब चाहते थे मनमोहन को मिले भारत रत्न:
एक समय ऐसा भी था, जब मनभोहन सिंह को भारत रत्न देने की चर्चा जोरों पर थी। हालांकि, इसकी संभावनाएं सिर्फ चर्चाओं तक ही सीमित होकर रह गई। इस बीच 2023 में प्रणब मुख्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुख्जी ने अपनी किताब प्रणब माई फादर, अ डॉटर रिमेंबर में इससे जुड़ा एक बड़ा दावा किया था। शर्मिष्ठा के मुताबिक, प्रणब राष्ट्रपति रहते हुए मनमोहन सिंह को भारत रत्न से सम्मानित करना चाहते थे.
शर्मिष्ठा ने किताब में लिखा है कि 30 अक्टूबर 2013 को उनके पिता ने इससे जुड़ी बातें अपनी डायरी में लिखीं. उन्होंने तत्कालीन कैबिनेट सचिव को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के प्रधान सचिव पुलक चटजी से बात करने के लिए कहा था. प्रणब ने कहा था कि कैबिनेट सचिव को पुलक को संदेश देना चाहिए कि वह इस संबंध में तब यूपीए की अध्यक्ष रहीं सोनिया गांधी से बात करें. किताब में शर्मिष्ठा ने बताया कि मनमोहन सिंह को भारत रत्न देने की इस मांग के बारे में प्रणब मुखर्जी की किताब में आगे कोई जिक्र नहीं मिलता. ऐसे में यह साफ नहीं है कि पु्लक चटर्जी ने यह बात सोनिया गांधी से की भी या नहीं। शर्मिष्ठा का कहना है कि उन्हें नहीं पता कि डॉ मनमोहन सिंह को देश का सर्वोच्च सम्मान देने की इस मांग पर आगे क्या हुआ.
मनमोहन न होते तो डूब जाती भारतीय अर्थव्यवस्था:
देश के लिए डॉक्टर मनमोहन सिंह का सबसे बड़ा योगदान वित्त मंत्री के रूप में आर्थिक सुधारों की शुरुआत करना है. वर्ष 1991 में भारत का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संतुलन निराशाजनक घाटे में था. 1991 में इसका विदेशी कर्ज 35 बिलियन डॉलर से दोगुना होकर 69 बिलियन डॉलर हो गया था. भारत के पास पैसा और समय दोनों बहुत कम थे. तब हमारे चालू खाते के घाटे से निपटने के लिए एक आपातकालीन उपाय के रूप में, भारतीय रिजर्व बैंक ने चालू खाते के घाटे को कम करने के लिए लगमग 400 मिलियन डॉलर जुटाने के लिए बैंक ऑफ इंग्लैंड के पास अपनी सोने की हिस्सेदारी गिरवी रख दी. इसके बाद भारतीय अर्थव्यवस्था, में सुधारों की एक श्रृंखला डॉक्टर सिंह ने शुरू की जिसे उन्होंने 'मानवीय चेहरे के साथ सुधार कहा. औद्यगिक नीति, 1991 की शुरुआत के साथ लाइसेंस राज को खत्म करने की प्रस्तावना लिखी गई. इस संकट से उबरने के लिए मनमोहन सिंह ने इस बजट में मारतीय बाजार को विदेशी कंपनियों के लिए खोल दिए. इस कदम से सरकार को चंद महीनों में ही पहली सफलता मिली, जब दिसंबर 1991 में भारत सरकार विदेशों में गिरवी रखा सोना छुड़वा कर आरबीआई कों सौँपने में कामयाब रही। देश में ग्लोबलाइजेशन की शुरुआत 1991 में सिंह ने ही की थी.उन्होंने भारत को दुनिया के बाजार के लिए तो खोला ही, बल्कि निर्यात और आयात के नियमों को भी सरल बनाया.डॉक्टर मनमोहन सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर आर्थिक सुधारों की कवायद की और उन्होंने मारतीय अर्थव्यवस्था की ओवरहॉलिंग में महत्वपूर्ण योगदान दिया है इससे कोई इंकार नहीं कर सकता.