भोपाल। पौधों से सभी लोग अवगत हैं। ये हमें ऑक्सीजन देते हैं, औषधि देते हैं, अनाज-फल सभी इनकी देन है। लेकिन हमने ऐसे पौधों का भी नाम सुन रखा है जो कीट खाते हैं। आम तौर से हम उन्हें कीटभक्षी पौधे के नाम से जानते हैं। इनकी 600 से अधिक ज्ञात प्रजातियां प्रकृति में अपना अस्तित्व रखती हैं। लेकिन ये पैधे आखिर ऐसा करते क्यों हैं? ये कीड़े खाने का कारण क्या है? आज हम इस बारे में बात करने वाले हैं।
देखा जाए तो ये पौधे दलदलीय इलाके में उगते हैं। इस इलाके में नाइट्रोजन की मात्रा काफी कम होती है या कई बार नाइट्रोजन होती ही नहीं है। इस कमी की पूर्ति के लिए ही ये पौधे कीट भक्षण करने लगते हैं। क्योंकि मिट्टी में भी कीड़ों के अवशेष से ही बड़ी मात्रा में नाइट्रोजन आपूर्ति होती है। कीड़े नाइट्रोजन का एक बहुत ही खास स्त्रोत माने जाते हैं। इन पौधों में विशेष अनुकूलन पाया जाता है, जिससे ये कीड़ों को पचाने में सक्षम हो जाते हैं। हालांकि इन पौधों में भी हरित लवक पाया जडाता है। जिससे ये अपना भोजन बनाते हैं, लिकन मिट्टी में सारे लवक न होने के कारण और खास करके नाइट्रोजन की कमी के चलते इन पौधों में कीट भक्षण का गुण उत्पन्न हो गया है।
कितनी ज़रूरी है नाइट्रोजन
किसी भी पौधे के लिए नाइट्रोजन एक खास अवयव के रूप में कार्य करती है। नाइट्रोजन की कमी से पौधों की पत्तियां शिराओं सहित पीली पड़ जाती है। यानि इनमें हरित लवक की कमी आने लगती है। इस कमी के चलते पत्तियां मुड़ जाती हैं, साथ ही विकृत रूप से विकास भी करती हैं। पत्तियों के आकार छोटे होना भी इसी कमी का लक्षण है। पौधों की शाख व तने भी इस कमी के सारण पतले और कमज़ोर हो जाते हैं। हालांकि पौधों की ऊंचाई में कोई फर्क देखने को नहीं मिलता है। इन सारी समस्याओं से निजात पाने के लिए ही इन कीटभक्षी पौधों द्वारा कीट खाए जाते हैं।
किस तरह होता है कीट भक्षण
हर पौधा अपने अनुकूलन के अनुसार कीट भक्षण करता है, इसके कई प्रकार ज्ञात हैं। हालांकि पाचन के लिए सभी कीटभक्षी पौधे एंजाइमों का ही उपयोग करते हैं। बाकी कीड़े का जो हिस्सा बच जाता है उसका पाचन बैक्टेरिया द्वारा होता है। कीड़ों को गिरफ्त में लेने के बाद ये पौधे अपने एंजाइम्स स्त्रावित करते हैं। इनसे कीड़ों के शरीर से पोषक तत्वों को बाहर निकाल लिया जाता है। फिर ये पौधे कीड़े से सारे पोषक तत्वों को अवशोषित कर लेतें हैं। इसके बाद कीड़ों के अवशोषों का पाचन बैक्टेरिया द्वारा किया जाता है।
ऐसे होते हैं इनके ट्रैप
पिटफुल ट्रैप, ये ट्रैप सामान्य तौर से पिचर पौधों में पाए जाते हैं। इनकी पत्तियां एक घट के तौर पर विकसित हो जाती हैं। इन पात्र नुमा पत्तियों में एक तरल भरा होता है, जो चिपचिपा या काफी फिसलनयुक्त, लसलसा होता है। इसपर बैठते ही कीड़े प्लांट के पात्र में गिर जाते हैं। फिर इनका पाचन कर लिया जाता है।
फ्लाइपैपर ट्रैप, इस प्रकार के जाल में कुछ बाल नुमा आकृतियां बनी होता हैं, जिनपर एक चिपचिपा पदार्थ लगा हुआ होता है। इसपर बैठते ही ये कीड़े को चिपका लेती हैं। फिर इनका पाचन कर लिया जाता है।
स्नैप ट्रेप, ये पत्तियों के तेजी से हिलने पर कीड़ों को पकड़ लेने वाला एक ट्रैप है। जो सामानेय तौर से वीनस फ्लाइट्रैप में देखा जाता है।
ब्लैडर ट्रैप, ये केवल ब्लैडरवार्ट पौधों में ही देखा जाता है। इनमें आंसिक रूप सेस्क्शन उपयोग होता है। जिससे कीड़ों को ये पौधे खीच कर एक थैली में कैद कर लेते हैं, फिर इनका शोषण कर लिया जाता है।
लॉब्स्टर पॉट ट्रैप, ये अर्धजलीय पौधों में पाए जाते हैं। इनकी जडों के पास बालनुमा अकृति उभर जाती है, जिसमें ये कीड़ों को फंसा कर उनको अवशोषित कर लेते हैं।