बीजापुर: देश का सबसे बड़ा नक्सल विरोधी अभियान सातवें दिन भी कररेगुट्टा पहाड़ी इलाके में पूरी ताकत के साथ जारी है। अब तक इस दुर्गम क्षेत्र से 150 से अधिक IED बरामद किए जा चुके हैं, जिन्हें नक्सलियों द्वारा सुरक्षाबलों को निशाना बनाने के लिए प्लांट किया गया था।
ऑपरेशन लंबे समय तक रहेगी जारी:
ऑपरेशन की शुरुआत करने वाले जवानों को अब वापस बुलाया जा रहा है, और उनकी जगह पर रिजर्व में रखी गई सुरक्षाबलों की नई टुकड़ियां भेजी जा रही हैं, ताकि ऑपरेशन की गति और प्रभावशीलता बनी रहे। यह रणनीति इस बात को दर्शाती है कि सुरक्षा एजेंसियां इस ऑपरेशन को लंबे समय तक जारी रखने के लिए पूरी तैयारी के साथ काम कर रही हैं।
शांति वार्ता की कवायद तेज, राजनीति में हलचल:
इस बीच शांति वार्ता को लेकर राजनीतिक हलचल भी तेज हो गई है। तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (KCR), वर्तमान मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी, और कई अन्य राजनीतिक नेता नक्सल समस्या के शांतिपूर्ण समाधान की वकालत कर रहे हैं।
KCR ने यह भी दावा किया कि माओवादी शांति वार्ता का प्रस्ताव भेज चुके हैं, लेकिन केंद्र सरकार की ओर से कोई सकारात्मक पहल नहीं हुई। उन्होंने जल्द ही एक प्रतिनिधिमंडल बनाकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखने का ऐलान भी किया।
सुरक्षा बनाम शांति: दो दिशाओं में बढ़ते कदम:
एक ओर जहां सुरक्षा बल जमीन पर नक्सलियों की ताकत को तोड़ने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक और सामाजिक मंचों पर शांति वार्ता को लेकर दबाव भी बढ़ रहा है। तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री और बीआरएस प्रमुख के. चंद्रशेखर राव (KCR) ने इस अभियान पर गंभीर सवाल खड़े करते हुए केंद्र और छत्तीसगढ़ सरकार से इसे तत्काल रोकने की मांग की है। एक आम सभा के दौरान उन्होंने कहा, “ऑपरेशन कगार की आड़ में निर्दोष आदिवासियों की जानें जा रही हैं। सरकार को युद्ध नहीं, संवाद का रास्ता अपनाना चाहिए।”
राजनीतिक समर्थन बढ़ा, कांग्रेस भी शांति वार्ता के पक्ष में:
KCR के बयान के तुरंत बाद तेलंगाना के मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता रेवंत रेड्डी भी इस मुद्दे पर सक्रिय हो गए। उन्होंने माओवादी वार्ता प्रस्ताव पर वरिष्ठ नेताओं से विचार-विमर्श शुरू कर दिया है। पूर्व मंत्री जना रेड्डी के आवास पर हुई अहम बैठक में रेवंत रेड्डी के साथ सरकारी सलाहकार के. केशव राव और वेम नरेंद्र रेड्डी भी शामिल हुए। करीब आधे घंटे तक चली इस बैठक में शांति वार्ता के प्रस्ताव पर विस्तृत चर्चा हुई।
बुद्धिजीवियों और पूर्व न्यायाधीशों की पहल:
इस मसले पर सामाजिक कार्यकर्ता और मानवाधिकार समर्थक भी सक्रिय हो गए हैं। पूर्व जस्टिस चंद्रकुमार, प्रोफेसर हरगोपाल और अन्य प्रमुख बुद्धिजीवियों ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर शांति वार्ता की पहल करने का आग्रह किया है। प्रोफेसर हरगोपाल के नेतृत्व में गठित समिति ने 22 अप्रैल को मुख्यमंत्री को पत्र भेजा था, जिसमें माओवादियों द्वारा घोषित युद्धविराम के बाद सरकार से संवाद शुरू करने की मांग की गई थी।