MP Teachers News : मध्यप्रदेश में अध्यापक संवर्ग के तकरीबन सवा दो लाख शिक्षकों को राज्य सरकार ने एक बार फिर तगड़ा झटका दिया है। शिक्षकों की सेवा को भर्ती दिनांक से नहीं मानकर राज्य शिक्षा संवर्ग में मर्ज किए जाने की नियुक्ति दिनांक से माना गया है। इस फैसले से शिक्षकों को ग्रेच्युटी और परिवार पेंशन से लेकर तमाम तरह के स्वत्वों का नुकसान उठाना पड़ रहा है। अब शिक्षक इंसाफ के लिए हाईकोर्ट और श्रम न्यायालय की शरण ले रहे हैं।
मध्यप्रदेश के स्कूलों में वर्ष 1998 से अध्यापक संवर्ग के अंतर्गत शिक्षकों की भर्ती शुरू हुई थी। उसके बाद से भर्ती का यह सिलसिला साल 2013 तक चला था। अध्यापक संवर्ग में भर्ती होने वाले दो लाख 37 हजार शिक्षक स्कूल शिक्षा और आदिम जाति विभाग में कार्यरत थे। अध्यापक संवर्ग के शिक्षक स्थानीय निकाय के कर्मचारी माने जाते थे। शासन ने साल 2018 में अध्यापक संवर्ग को राज्य शिक्षा सेवा कैडर में नियुक्ति प्रदान कर दी थी। जुलाई 2018 से सभी अध्यापक स्कूल शिक्षा विभाग में मर्ज कर दिए गए।
अध्यापकों के भविष्य पर संकट
खास बात यह कि राज्य शिक्षा सेवा संवर्ग में अध्यापकों का संविलियन नहीं किया गया, बल्कि उनकी नई तारीख यानी जुलाई 2028 की स्थिति में नियुक्ति कर दी। इससे अध्यापकों की खुशी काफूर हो गई। क्योंकि नए कैडर की विसंगति पूर्ण सेवा शर्तों ने अध्यापकों की वरिष्ठता, पदोन्नति, क्रमोन्नति, ग्रेच्युटी, पेंशन जैसी सुविधाओं पर ग्रहण लगा दिया। राज्य शिक्षा सेवा संवर्ग में अध्यापक संवर्ग का नियुक्ति के स्थान पर संविलियन किया जाता, तो वरिष्ठता, पदोन्नति, क्रमोन्नति, ग्रेच्युटी, परिवार पेंशन सहित सभी सुविधाओं से वंचित नहीं होना पड़ता, लेकिन विभाग के अधिकारियों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री की घोषणा के बावजूद शिक्षा विभाग में संविलियन के स्थान पर जुलाई 2018 से नए कैडर में नियुक्ति कर देने से अध्यापकों के भविष्य के सामने संकट खड़ा हो गया।
शासन से निराश अध्यापकों ने राज्य शिक्षा सेवा संवर्ग की विसंगति पूर्ण सेवा शर्तों के खिलाफ हाईकोर्ट जबलपुर, इंदौर, ग्वालियर में याचिकाएं दायर की थी। याचिकाओं में नियुक्ति के स्थान पर संविलियन करने, प्रथम नियुक्ति दिनांक से वरिष्ठता, वेतन विसंगतियों में सुधार, परिवार पेंशन की गुहार लगाई गई थी। ग्रेच्युटी के संबंध में अदालत ने शिक्षकों के पक्ष में फैसला सुनाया है। अब विभाग के अफसरों ने साफ कर दिया है कि नियुक्ति दिनांक से सर्विस नहीं मानी जाएगी। संचालक लोक शिक्षण ने सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को जारी आदेश में कहा कि श्रम न्यायालय से प्राप्त नोटिस को गंभीरता से लिया जाए। याचिका का अध्ययन कर उनके पक्ष को भी ध्यान में रखा जाए, ताकि कोई विपरीत आदेश पारित नहीं हो जाए।
क्रमोन्नति और पदोन्नति में मानी गई पूरी सर्विस
स्कूल शिक्षा विभाग ने शिक्षकों की सर्विस को नियुक्ति दिनांक से नहीं माना है। शिक्षकों की सर्विस की गणना राज्य शिक्षा सेवा में नियुक्ति दिनांक यानी जुलाई 2018 से की जा रही है। इससे शिक्षकों को ग्रेच्युटी, पेंशन, अर्जित अवकाश आदि के लाभ नहीं मिल पा रहे है। विभाग का दावा है कि क्रमोन्नति और पदोन्नति के मामले में सर्विस की गणना पहले नियुक्ति दिनांक से की जा रही है। इससे शिक्षकों की क्रमोन्नति और पदोन्नति तो प्रभावित नहीं हो रही है, लेकिन ग्रेच्युटी और पेंशन प्रभावित हुई है।
DPI ने जारी किया आदेश
संचालक लोक शिक्षण संचालनालय की ओर से जारी किए गए आदेश में जिला शिक्षा अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि ऐसे नवीन संवर्ग के लोकसेवक जिनकी सेवानिवृत्ति से पूर्व नवीन संवर्ग का सेवाकाल पांच वर्ष से कम है, पेंशन नियमों के तहत उन्हें ग्रेज्यूटी की पात्रता नहीं है। उनमें से कतिपय लोकसेवकों द्वारा श्रम न्यायालय में ग्रेच्युटी की मांग को लेकर याचिकाएं लगाई जा रही है। प्रकरणों का उचित प्रतिरक्षण नहीं होने के कारण श्रम न्यायालय द्वारा याचिकाकर्ता को ग्रेच्युटी प्रदान करने के निर्णय पारित किए जा रहे हैं। यह देखने में आ रहा है कि आवेदकों द्वारा तथ्यों को छिपाया जाकर याचिकाएं प्रस्तुत की जा रही है।
गंभीरता से लिया जाए नोटिस
प्रथम दृष्टतया यह स्पष्ट हुआ है कि न्यायालय के समक्ष सही स्थिति प्रस्तुत नहीं हो पाने के कारण संबंधित लोकसेवक को शिक्षा विभाग द्वारा कर्मचारी उनकी नियुक्ति तिथि से मान लिया गया है, जबकि नवीन संवर्ग की अवधि के लिए ही वे शासकीय सेवक हैं। इनके पूर्व वे निकाय एवं उसके पूर्व हुए शिक्षाकर्मी/संविदा पर नियुक्त किए गए थे। यह तथ्य संज्ञान में नहीं आने के कारण विपरीत निर्णय पारित हुए है। इस संबंध में अब आगामी कार्यवाही की जाए। श्रम न्यायालय से प्राप्त नोटिस को गंभीरता से लिया जाए। याचिका का अध्ययन कर उचित्त प्रतिरक्षण किया जाए, ताकि कोई विपरीत आदेश पारित नहीं हो। जबाव दावा पेश करने से पहले संबंधित जिले के लोक अभियोजन अधिकारी/अधिकृत पैनल अधिवक्ता के संज्ञान में सबंधित तथ्यों को लाया जाए और उक्त बिन्दुओं को संज्ञान में लेते हुए जबाव दावा पेश किया जाए। श्रम न्यायालय के आदेश के विरुद्ध अपील मुख्य श्रम आयुक्त के न्यायालय के सामने 60 दिन के भीतर सुनिश्चित करें। बगैर जबाव दावा पेश किए यदि न्यायालय द्वारा विपरीत निर्णय पारित किए जाते हैं, तो जिम्मेदारी नियत की जाएगी।