नरक चतुर्दशी, जिसे छोटी दिवाली या रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है, दीपावली के एक दिन पहले कार्तिक मास की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत और नकारात्मकता से मुक्ति का प्रतीक है।
नरक चतुर्दशी मनाने की पौराणिक कथा:
नरक चतुर्दशी का संबंध असुर नरकासुर के वध से जुड़ा हुआ है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, नरकासुर नाम का एक अत्याचारी राक्षस लोगों को बहुत कष्ट पहुंचा रहा था और देवताओं एवं साधारण जन को आतंकित कर रखा था। भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध कर, उसे उसके अत्याचारों से मुक्त किया और उसके द्वारा बंदी बनाई गई 16,000 कन्याओं को स्वतंत्र कराया। इस विजय के बाद, लोगों ने दीप जलाकर उल्लास मनाया और तभी से इस दिन को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है।
नरक चतुर्दशी पर परंपराएं:
1. उजाला और दीप प्रज्ज्वलन: इस दिन लोग घर की सफाई कर दीप जलाते हैं, जिससे बुराई और नकारात्मकता का अंत हो सके।
2. रूप स्नान: नरक चतुर्दशी के दिन सुबह जल्दी उठकर विशेष उबटन और सुगंधित तेल से स्नान करने की परंपरा है, जिसे रूप स्नान कहते हैं। माना जाता है कि इससे न केवल शरीर की शुद्धि होती है बल्कि स्वास्थ्य और सुंदरता भी बढ़ती है।
3. यम दीपदान: नरक चतुर्दशी पर यमराज के लिए दीपदान करने का विशेष महत्व है। रात में घर के बाहर दीपक जलाकर यमराज की पूजा की जाती है, जिससे परिवार को दीर्घायु और मृत्यु भय से मुक्ति मिले।
नरक चतुर्दशी न केवल अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक है, बल्कि यह पर्व लोगों को आंतरिक और बाहरी स्वच्छता का संदेश भी देता है। दीप जलाकर और नहाकर लोग अपने शरीर और आत्मा को पवित्र करने का प्रयास करते हैं, ताकि उनके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और शांति बनी रहे।
डिस्क्लेमर: यह जानकारी सामान्य मान्यताओं पर आधारित है। inh 24x7 इसकी पुष्टि नहीं करता है।