रायपुर: मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने 21 मार्च को भारत के लोकतंत्र के लिए एक अहम दिन बताया। उन्होंने कहा कि आपातकाल भारतीय लोकतंत्र का काला दौर था, और 21 मार्च 1977 वह दिन था जब देश ने तानाशाही के खिलाफ जीत हासिल की थी। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ एक राजनीतिक बदलाव नहीं था, बल्कि यह भारत के नागरिकों की आस्था, साहस और संघर्ष की जीत थी।
आपातकाल ने लोगों के मूल अधिकारों को छीन लिया था:
मुख्यमंत्री साय ने कहा कि 1975 में लगाए गए आपातकाल ने लोगों के मूल अधिकारों को छीन लिया था। हमारे लोकतंत्र का आधार, यानी न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका का संतुलन, तोड़कर सारी ताकत एक ही परिवार के हाथों में जमा कर दी गई थी। नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन, मीडिया पर पाबंदी, विरोध करने वालों को दबाना और रातों रात गिरफ्तारियां करना, ये सब संविधान के खिलाफ था और उस डरावने समय को दिखाता है।
मेरे बड़े पिताजी को 19 महीने तक जेल में रखा गया था:
मुख्यमंत्री साय ने कहा कि मेरे बड़े पिताजी नरहरि साय को भी 19 महीने तक जेल में रखा गया था। वे लाखों लोकतंत्र सेनानियों में से एक थे, जिन्होंने तानाशाही के खिलाफ खड़े होकर भारत की आत्मा की रक्षा की। कई सेनानियों को बंदी बना लिया गया, और उनके परिवारों को भी बहुत बुरी यातनाएं सहनी पड़ीं। मुख्यमंत्री साय ने उस समय की क्रूर सरकार को याद करते हुए कहा कि अखबारों पर ताले लगाए गए थे, और कलाकारों की आवाज़ को बंद कर दिया गया था। गायक किशोर कुमार जैसे कलाकार को भी रेडियो पर बैन कर दिया गया क्योंकि उन्होंने इमरजेंसी का विरोध किया था। यह सब कुछ उस संविधान के नाम पर हो रहा था, जिसे बनाने में बाबा साहेब अंबेडकर ने अपनी पूरी ज़िंदगी लगा दी थी।
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1975 में आपातकाल लगाकर बड़ा ग़लत काम किया गया:
मुख्यमंत्री ने कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि आज वही लोग संविधान की किताब हाथ में लेकर उसकी बात करते हैं, जिन्होंने कभी उसे नज़रअंदाज किया था। जिन्होंने संविधान को तोड़ा था, वही अब उसकी बात करते हैं। 1975 में आपातकाल लगाकर बड़ा ग़लत काम किया गया, और फिर वही ग़लती हुई जब पिछली कांग्रेस सरकार ने लोकतंत्र सेनानियों की सम्मान राशि रोक दी – यह उन सेनानियों के बलिदान और संघर्ष का अपमान था।
भारत का लोकतंत्र किसी एक पार्टी या सत्ता का नहीं:
मुख्यमंत्री साय ने लोकतंत्र सेनानियों को सम्मान देते हुए कहा कि यह दिन हमें याद दिलाता है कि भारत का लोकतंत्र किसी एक पार्टी या सत्ता का नहीं, बल्कि करोड़ों भारतीयों के साहस, बलिदान और दृढ़ संकल्प का नतीजा है। हमें हमेशा सतर्क रहना चाहिए ताकि कभी फिर लोकतंत्र पर अंधकार का साया न पड़े। उन्होंने कहा कि 21 मार्च 1977 को आपातकाल का धब्बा हट गया, लेकिन उस मानसिकता का असर अभी भी है। उन्होंने यह भी कहा कि अब देश की जनता जागरूक है और तानाशाही की सोच को पहचान कर उसे हराना जानती है।
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