भोपाल। मुख्यमंत्री जन कल्याण अभियान के तहत अधिक से अधिक पात्र हितग्राहियों को आयुष्मान भारत योजना का लाभ दिलाने के लिए अब नगर निगम के वार्ड स्तर पर आयुष्मान कार्ड बनाए जाएंगे। निगम प्रशासन ने नागरिकों से अपील की है कि वह संजीवनी क्लीनिक स्वास्थ्य केन्द्रों के अतिरिक्त अपने नजदीकी वार्ड कार्यालय में वार्ड प्रभारी से सम्पर्क कर पात्रता अनुसार आयुष्मान कार्ड बनवाए।
जिस पद्धति का लाइसेंस, उसी में कर सकेंगे इलाज: डॉ. प्रभाकर
राजधानी के निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम्स के लिए सीएमएचओ डॉ. प्रभाकर तिवारी ने एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है। इस आदेश के अनुसार अब निजी अस्पतालों को जिस चिकित्सा पद्धति (एलोपैथिक, होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक या यूनानी) के लिए लाइसेंस प्राप्त है, उसी पद्धति के चिकित्सकों से ही उपचार कराना होगा। अब एक ही अस्पताल में विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के चिकित्सक एक साथ काम नहीं कर सकेंगे। यदि किसी अस्पताल में इस आदेश का उल्लंघन पाया गया तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। यह आदेश मध्यप्रदेश उपचर्याग्रह संबंधी स्थापनाएं (रजिस्ट्रीकरण एवं अनुज्ञापन) अधिनियम 1973 के तहत जारी किया गया है। इस अधिनियम के तहत सभी चिकित्सा संस्थाओं को अलग-अलग पंजीकृत करवाना अनिवार्य है।
आदेश का पालन नहीं करने पर होगी कार्रवाई
शिकायतें मिल रही थी कि निजी अस्पताल में विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के चिकित्सक एक साथ काम कर रहे हैं। इसलिए आदेश जारी किया गया है कि जिस चिकित्सा पद्धति का लाइसेंस चिकित्सक के पास है उसे उसी पद्धति में इलाज करना होगा। इससे मरीजों को बेहतर गुणवत्ता वाला उपचार मिलेगा, क्योंकि चिकित्सक अपनी विशेषज्ञता के क्षेत्र में काम करेंगे। आदेश का पालन नहीं करने वाले अस्पतालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
डाॅ. प्रभाकर तिवारी, सीएमएचओ
जिला शीघ्र हस्तक्षेप केंद्र के 10 साल पूरे 10 लाख बच्चों को मिल रही सेवाएं
जिला शीघ्र हस्तक्षेप केंद्र के जरिए अब तक जन्मजात रोग से ग्रसित 35 हजार बच्चों का इलाज हुआ है। जिसके चलते जन्मजात असमानता से राजधानी को मुक्ति मिली। यह दावा सीएमएचओ डॉ. प्रभाकर तिवारी ने केंद्र के दस साल पूरे होने पर किया। इस दौरान केंद्र के अब तक के आंकड़े भी जारी किए गए। जिसके अनुसार बीते दस सालों में क्लब फुट के 400 और क्लेक्ट लिप व क्लेफ्ट पेलेट के 149 बच्चों की सर्जरी कराई गई। जेपी अस्पताल में डीइआइसी केंद्र संचालित किया जा रहा है। जिसमें राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत बच्चों में जन्मजात विकृतियों, बीमारियों, पौष्टिकता की कमी और विकासात्मक विलंब की पहचान की जा रही है। केंद्र में अब तक लगभग साढ़े पांच लाख बच्चों की जांच हुई है।